Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten
आ़जिज़ी वाले लह्जे में "या नबिय्यल्लाह ! या रसूलल्लाह ! या ह़बीबल्लाह !" कह कर ।
(तफ़्सीरे ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान, पारह 18, सूरतुन्नूर, तह़्तुल आयत : 63, मुलख़्ख़सन)
ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ इरशाद फ़रमाते हैं : पहले हु़ज़ूर (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) को या मुह़म्मद, या अबल क़ासिम कहा
जाता । जब अल्लाह करीम ने अपने नबी, मक्की मदनी صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीम को इस से मुमानअ़त फ़रमाई, तो सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان "या नबिय्यल्लाह ! या रसूलल्लाह !" कहा करते । (دلائل النبوۃ لابی نعیم، الفصل الاول ،الجزء الاول ص۱۹)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! ग़ौर कीजिये ! हु़ज़ूरे पाक, साह़िबे लौलाक صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीम का मुआ़मला किस क़दर अहम है कि अल्लाह पाक को येह बात भी ना पसन्द है कि कोई मेरे ह़बीब (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) का नाम ले कर मुख़ात़ब करे । उ़लमा तसरीह़ (या'नी वज़ाह़त) फ़रमाते हैं : हु़ज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को नाम ले कर निदा करनी (या'नी पुकारना) ह़राम है । (फ़तावा रज़विय्या : 30 / 157)
याद रहे ! हु़ज़ूरे अन्वर, शाफे़ए़ मह़्शर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीम सिर्फ़ ह़याते ज़ाहिरी तक मह़दूद नहीं थी बल्कि रहती दुन्या तक आने वाले हर मुसलमान पर आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शानो अ़ज़मत को तस्लीम करना लाज़िम है ।जैसा कि :
ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ल्लामा इस्माई़ल ह़क़्क़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : हु़ज़ूरे पुरनूर, शाफे़ए़ यौमुन्नुशूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ाहिरी ह़यात और ज़ाहिरी वफ़ात के बा'द, ग़रज़ ! हर ह़ालत में हु़ज़ूरे अकरम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीमो तौक़ीर उम्मत पे लाज़िम और ज़रूरी है क्यूंकि दिलों में जितनी हु़ज़ूर की ता'ज़ीम बढ़ेगी, उतना ही नूरे ईमान में इज़ाफ़ा होता रहेगा । (تفسیر روح البیان ج۷،ص۲۱۶)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा ! हु़ज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से इ़श्क़ो मह़ब्बत और हर मुआ़मले में आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का बेह़द अदब, ईमान में इज़ाफे़ का सबब और ईमान की जड़ है । इस बात को यूं समझिये कि अगर किसी दरख़्त की जड़ ही कट जाए, तो वोह दरख़्त सूख जाता और उस पर लगे हुवे फल और फूल गल सड़ के झड़ जाते हैं । इसी त़रह़ ता'ज़ीमे मुस्त़फ़ा, ईमान के पौदे