Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten
मुबारका दलालत करती हैं । चुनान्चे, पारह 26, सूरतुल फ़त्ह़ की आयत नम्बर 8 और 9 में रब्बे करीम इरशाद फ़रमाता है :
اِنَّاۤ اَرْسَلْنٰكَ شَاهِدًا وَّ مُبَشِّرًا وَّ نَذِیْرًاۙ(۸) لِّتُؤْمِنُوْا بِاللّٰهِ وَ رَسُوْلِهٖ وَ تُعَزِّرُوْهُ وَ تُوَقِّرُوْهُؕ-وَ تُسَبِّحُوْهُ بُكْرَةً وَّ اَصِیْلًا(۹)(پارہ:۲۶، الفتح:۸،۹)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : बेशक हम ने तुम्हें गवाह और ख़ुश ख़बरी देने वाला और डर सुनाने वाला बना कर भेजा ताकि (ऐ लोगो !) तुम अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाओ और रसूल की ता'ज़ीमो तौक़ीर करो और सुब्ह़ो शाम अल्लाह की पाकी बयान करो ।
आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इस आयते करीमा के ज़िम्न में जो इरशाद फ़रमाया उस का ख़ुलासा येह है : मुसलमानो ! देखो ! अल्लाह पाक ने दीने इस्लाम भेजने और क़ुरआने मजीद उतारने का मक़्सद तीन बातें इरशाद फ़रमाई हैं : पहली येह कि अल्लाह पाक व रसूल صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर ईमान लाना, दूसरी येह कि रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीम करना, तीसरी येह कि अल्लाह पाक की इ़बादत करना । इन तीनों बातों की बेहतरीन तरतीब तो देखिये, सब से पहले ईमान का ज़िक्र फ़रमाया और सब से आख़िर में अपनी इ़बादत का और दरमियान में अपने प्यारे ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीम का हु़क्म इरशाद फ़रमाया क्यूंकि ईमान के बिग़ैर हु़ज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'ज़ीम फ़ाइदा न देगी ।
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा आयाते मुबारका और आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के इरशादाते आ़लिय्या से वाजे़ह़ हुवा कि ता'ज़ीमे मुस्त़फ़ा ही अस्ले ईमान है । अगर कोई शख़्स अ़ज़मते मुस्त़फ़ा से कनारा कशी करते हुवे दीगर नेक आ'माल की कोशिश करता है, तो उस का कोई अ़मल क़ाबिले क़बूल न होगा, ता'ज़ीमे मुस्त़फ़ा में ज़रा सी ख़ामी तमाम नेक आ'माल की बरबादी का बाइ़स बन सकती है । जैसा कि पारह 26, सूरतुल हु़जुरात की आयत नम्बर 2 में इरशादे बारी है :
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَرْفَعُوْۤا اَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِیِّ وَ لَا تَجْهَرُوْا لَهٗ بِالْقَوْلِ كَجَهْرِ بَعْضِكُمْ لِبَعْضٍ اَنْ تَحْبَطَ اَعْمَالُكُمْ وَ اَنْتُمْ لَا تَشْعُرُوْنَ(۲) (پارہ:۲۶، الحجرات:۲)