Book Name:Aala Hazrat Ka Ishq-e-Rasool
ने मदनी इनआ़मात पर अ़मल को अपनी ज़िन्दगी का मा'मूल बना लिया, जिस की बरकत से उन्हें नमाज़ों की पाबन्दी नसीब हुई, नेकियों से मह़ब्बत हुई और गुनाहों से बचने का ज़ेहन बना । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ عَزَّ وَجَلَّ अब वोह मुबल्लिग़ए दा'वते इस्लामी की ह़ैसिय्यत से मदनी कामों में तरक़्क़ी व उ़रूज के लिये कोशां हैं ।
अल्लाह عَزَّ وَجَلَّ अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ पर अपनी ख़ास रह़मतों का नुज़ूल फ़रमाए और दा'वते इस्लामी को तरक़्क़ी व उ़रूज अ़त़ा फ़रमाए ।
اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
(अनोखी कमाई, स. 27)
अगर आप को भी दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल के ज़रीए़ कोई मदनी बहार या बरकत मिली हो, तो आख़िर में मदनी बहार मक्तब पर जम्अ़ करवा दें ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ अपनी ज़ात के लिये तो सब कुछ बरदाश्त कर सकते थे लेकिन बेचैन दिलों के चैन, रह़मते कौनैन صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शाने अक़्दस में थोड़ी सी बे अदबी व गुस्ताख़ी भी बरदाश्त नहीं कर सकते थे, येही वज्ह है कि गुस्ताख़ों की गुस्ताख़ाना इ़बारतों को देखते ही आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की आंखों से आंसूओं की झड़ी लग जाती, दुश्मनाने मुस्त़फ़ा की साज़िशों को बे निक़ाब करने में किसी की डांट डपट को ख़ात़िर में न लाते, अपने मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शानो अ़ज़मत बयान करने में मश्ग़ूल रहते और सारी ज़िन्दगी गुस्ताख़ों की त़रफ़ से प्यारे मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इ़ज़्ज़त व अ़ज़मत पर किये जाने वाले ह़म्लों का सख़्ती से दिफ़ाअ़ करते रहे ताकि वोह ग़ुस्से में जल भुन कर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को बुरा भला कहना और लिखना शुरूअ़ कर दें । जैसा कि :
आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की तह़रीर का ख़ुलासा है : اِنْ شَآءَ اللہُ الْعَزِیْزْ अपनी ज़ात पर किये जाने वाले ह़म्लों और तन्क़ीद भरे जुम्लों की त़रफ़ कोई तवज्जोह न दूंगा, सरकार (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की त़रफ़ से मुझे येह ख़िदमत सिपुर्द है कि इ़ज़्ज़ते सरकार की ह़िमायत (या'नी दिफ़ाअ़) करूं, न कि अपनी, मैं तो ख़ुश हूं कि जितनी देर मुझे गालियां देते, बुरा कहते और मुझ पर बोह्तान लगाते हैं, उतनी देर मुह़म्मदुर्रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की (शान में) बदगोई और ऐ़बजूई से ग़ाफ़िल रहते हैं, मेरी आंखों की ठन्डक इस में है कि मेरी और मेरे बाप दादा की इ़ज़्ज़तो आबरू, इ़ज़्ज़ते मुह़म्मदुर्रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के लिये ढाल बनी रहे । (फ़तावा रज़विय्या, 15 / , मुलख़्ख़सन)