Book Name:Jannat Ki Baharain
(ज़ौके़ ना'त, स. 156)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! यक़ीनन दुन्या की मह़ब्बत और मालो ज़र की ख़्वाहिश से बच कर जन्नत पाने के लिये अ़मल करना इन्तिहाई दुशवार मर्ह़ला है लेकिन अगर हम आख़िरत में मिलने वाली आसानियों, शादमानियों और आसाइशों पर नज़र रखेंगी, तो यक़ीनन हमारे लिये अ़मल करना आसान होगा । इस को यूं समझिये कि अगर हमारे सामने 100 रुपये और एक लाख रुपये रखे जाएं और इन में से एक को लेने का इख़्तियार दिया जाए तो यक़ीनन हम में से हर शख़्स एक लाख रुपये पर ही नज़र रखेगा और एक लाख रुपये ही लेना चाहेगा, 100 रुपये की त़रफ़ कोई भी अ़क़्लमन्द नज़र उठा कर भी नहीं देखेगा । बिल्कुल इसी त़रह़ दुन्या व माफ़ीहा (या'नी दुन्या और जो कुछ इस में है) इस की मिसाल 100 रुपये के नोट जैसी है जब कि आख़िरत में मिलने वाले फ़ाइदे और जन्नत में मिलने वाली ने'मतें तो ऐसी हैं जिन का कोई मोल ही नहीं क्यूंकि दुन्या की आरज़ी ने'मतों का जन्नत की हमेशा रहने वाली ने'मतों से कोई मुक़ाबला ही नहीं । इस लिये इस दुन्या की फ़िक्र छोड़िये और आख़िरत कमाने, नेकियों में दिल लगाने और जन्नत पाने की कोशिश कीजिये ।
मुफ़्लिसो ! उन की गली में जा पड़ो
बागे़ ख़ुल्द इकराम हो ही जाएगा
(ह़दाइके़ बख़्शिश, स. 41)
आइये ! ह़ुसूले तरग़ीब के लिये "जन्नत की चन्द बहारें" सुनिये । चुनान्चे,
अगर जन्नत की कोई नाख़ुन भर चीज़ दुन्या में ज़ाहिर हो, तो तमाम आसमान व ज़मीन उस से आरास्ता हो जाएं और अगर जन्नती का कंगन ज़ाहिर हो, तो सूरज की रौशनी मिटा दे, जैसे आफ़्ताब सितारों की रौशनी मिटा देता है । (बहारे शरीअ़त, 1 / 153 (سنن الترمذي، کتاب صفۃ الجنۃ، باب ما جاء في صفۃ أھل الجنۃ، الحدیث: ۲۵۴۷، ج۴، ص۲۴۱،