Book Name:Jannat Ki Baharain
जन्नत निशान है : जिस ने मेरी सुन्नत से मह़ब्बत की, उस ने मुझ से मह़ब्बत की और जिस ने मुझ से मह़ब्बत की, वोह जन्नत में मेरे साथ होगा ।
(مِشْکاۃُ الْمَصابِیح ،ج۱ ص۵۵ حدیث ۱۷۵ دارالکتب العلمیۃ بیروت )
सीना तेरी सुन्नत का मदीना बने आक़ा
जन्नत में पड़ोसी मुझे तुम अपना बनाना
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
तिलावत करने की सुन्नतें और आदाब
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! आइये ! तिलावत की सुन्नतें और आदाब के बारे में चन्द मदनी फूल सुनने की सआदत ह़ासिल करती हैं । पहले 2 फ़रामैने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुलाह़ज़ा कीजिये ।
- फ़रमाया : क़ुरआन पढ़ो क्यूंकि वोह क़ियामत के दिन अपने अस्ह़ाब के लिये शफ़ीअ़ (या'नी शफ़ाअ़त करने वाला) हो कर आएगा ।
(مسلم ، کتاب صلاۃ المسافرین وقصرہا، باب فضل قراء ۃ القرآن وسورۃ البقرۃ، ص۳۱۴، حدیث:۱۸۷۴)
- फ़रमाया : मेरी उम्मत की अफ़्ज़ल इ़बादत “तिलावते क़ुरआन” है ।
(شعب الایمان للبیہقی، باب فی تعظیم القرآن، فصل فی ارمان تلاوتہ، دون اللفظ تلاوۃ ۲/۳۵۴،حدیث:۲۰۲۲)
٭ क़ुरआने पाक को अच्छी आवाज़ से और ठहर ठहर कर पढ़ना सुन्नत है । (इह़याउल उ़लूम, 1 / 843) ٭ मुस्तह़ब येह है कि बा वुज़ू, क़िब्ला रू, अच्छे कपड़े पहन कर तिलावत करे । (बहारे शरीअ़त, जिल्द 1, ह़िस्सा 3, स. 550)
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٭ तिलावत के शुरूअ़ में "اَعُوْذُ" पढ़ना मुस्तह़ब है और सूरत की इब्तिदा में "बिस्मिल्लाह" पढ़ना सुन्नत है, वरना मुस्तह़ब है । (सिरात़ुल जिनान, 1 / 21) ٭ क़ुरआने मजीद देख कर पढ़ना, ज़बानी पढ़ने से अफ़्ज़ल है । (सिरात़ुल जिनान, 1 / 21) ٭ क़ुरआने पाक देख कर तिलावत करने पर दो हज़ार नेकियां लिखी जाती हैं और ज़बानी पढ़ने पर एक हज़ार । (کنزالعمال،کتاب الاذکار،قسم الاقوال،الباب فی تلاوۃالقرآن الخ رقم۲۳۰۱،ج۱،ص۲۶۰ملخصاً) ٭ क़ुरआने करीम की तिलावत के वक़्त रोना मुस्तह़ब है । (सिरात़ुल जिनान, 5 / 526) ٭ जब बुलन्द आवाज़ से क़ुरआने मजीद पढ़ा जाए, तो तमाम ह़ाज़िरीन पर सुनना फ़र्ज़ है जब कि वोह मजमअ़ क़ुरआने मजीद सुनने की ग़रज़ से ह़ाज़िर हो, वरना एक का सुनना काफ़ी है अगर्चे बाक़ी लोग अपने काम में मसरूफ़ हों । (सिरात़ुल जिनान, 1 / 22) ٭ मजमअ़ में सब लोग बुलन्द आवाज़ से पढ़ें, येह ह़राम है । अगर चन्द शख़्स पढ़ने वाले हों, तो ह़ुक्म है कि आहिस्ता पढ़ें । (सिरात़ुल जिनान, 1 / 22) ٭ तीन दिन से कम में क़ुरआने करीम न ख़त्म करे बल्कि कम अज़ कम तीन दिन या सात दिन या चालीस दिन में क़ुरआने करीम ख़त्म करे ताकि मआनी व मत़ालिब को समझ कर तिलावत करे । (अ़जाइबुल क़ुरआन स. 238) ٭ तरतील के साथ इत़मीनान से और ठहर ठहर कर तिलावत करे । (अ़जाइबुल क़ुरआन स. 238) ٭ तिलावत के लिये सब से अफ़्ज़ल वक़्त साल भर में रमज़ान शरीफ़ के आख़िरी दस अय्याम और ज़ुल ह़िज्जा के इब्तिदाई दस दिन हैं । (अ़जाइबुल क़ुरआन स. 239) ٭ रात में तिलावत का बेहतरीन वक़्त मग़रिब और इ़शा के दरमियान है और इस के बा'द निस्फ़ शब के बा'द और दिन में सब से उ़म्दा सुब्ह़ का वक़्त है । (अ़जाइबुल क़ुरआन स. 239) ٭ ग़ुस्ल ख़ाने और नजासत की जगहों में क़ुरआन शरीफ़ पढ़ना नाजाइज़ है । (जन्नती ज़ेवर, स. 300) ٭ रात के वक़्त तिलावत की कसरत करे क्यूंकि उस वक़्त जे़हन पुर सुकून और दिल मुत़्मइन होता है । (अ़जाइबुल क़ुरआन स. 239) ٭ बाज़ारों और कारख़ानों में जहां लोग काम में लगे हों, ज़ोर से क़ुरआन शरीफ़ पढ़ना नाजाइज़ है । (जन्नती जे़वर, स. 301) त़रह़ त़रह़ की हज़ारों सुन्नतें सीखने के लिये मकतबतुल मदीना की मत़बूआ दो कुतुब (1) 312 सफ़ह़ात पर मुश्तमिल किताब बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा 16 और (2) 120 सफ़ह़ात की किताब "सुन्नतें और आदाब" इस के इ़लावा शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत के दो रसाइल "101 मदनी फूल" और "163 मदनी फूल" हदिय्यतन त़लब कीजिये और पढि़ये । صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد |