Jannat Ki Baharain

Book Name:Jannat Ki Baharain

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                                 صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

        मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! नेक आ'माल, जन्नत तक पहुंचने का रास्ता हैं और यक़ीनन हम में से हर एक की येह ख़्वाहिश होगी कि जन्नत की आलीशान ने'मतों और उस के बाग़ात की सैर से हम मुस्तफ़ीद हो, तो याद रखिये ! कि नेक आ'माल जन्नत तक पहुंचाने के लिये पुल का किरदार अदा करते हैं । तो हमें भी नेक आ'माल की कसरत करनी चाहिये !

नवाफ़िल की कसरत

          मन्क़ूल है कि ह़ज़रते सय्यिदुना अज़हर बिन मुग़ीस رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ जो कि निहायत इ़बादत गुज़ार थे, फ़रमाते हैं कि मैं ने ख़्वाब में एक ऐसी औरत को देखा जो दुन्या की औरतों की त़रह़ न थी । तो मैं ने उस से पूछा कि तुम कौन हो ? उस ने जवाब दिया : "मैं जन्नत की ह़ूर हूं" येह सुन कर मैं ने उस से कहा : मेरे साथ शादी कर लो, उस ने कहा : मेरे मालिक के पास शादी का पैग़ाम भेज दो और मेरा महर अदा कर दो । मैं ने पूछा : तुम्हारा महर क्या है ? तो उस ने कहा : रात में देर तक नमाज़ पढ़ना ।

(जन्नत में ले जाने वाले आ'माल, स. 148 (المتجر الرابح فی ثواب العمل الصالح۱۸۷،

वोह तो निहायत सस्ता सौदा बेच रहे हैं जन्नत का

हम मुफ़्लिस क्या मोल चुकाएं, अपना हाथ ही ख़ाली है

(ह़दाइके़ बख़्शिश, स. 186)

          इसी त़रह़ जन्नत में दाख़िले और वहां आ'ला मरातिब पाने का ज़रीआ बनने वाले आ'माल में से एक अ़मल सलाम को आम करना और खाना खिलाना है, सलाम को आम करने और दूसरों को अपने ख़्वाने जूद (यानी अपने पास) से कुछ न कुछ अ़त़ा करते रहने की आदत बनाने से जहां इन्सान के वक़ार को चार चांद लगते हैं, वहीं ऐसा शख़्स उन ख़ुश नसीबों में भी शामिल हो जाता है जिन के लिये जन्नत की नवीद (या'नी ख़ुश ख़बरी) है । चुनान्चे,