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Book Name:Faizan-e-Ashabe Suffah

तौसीफ़ बयान फ़रमाई है चुनान्चे, पारह 15, सूरए कह्फ़ की आयत नम्बर 28 में इरशाद फ़रमाया :

وَ اصْبِرْ نَفْسَكَ مَعَ الَّذِیْنَ یَدْعُوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَدٰوةِ وَ الْعَشِیِّ یُرِیْدُوْنَ وَجْهَهٗ وَ لَا تَعْدُ عَیْنٰكَ عَنْهُمْۚ-تُرِیْدُ زِیْنَةَ الْحَیٰوةِ الدُّنْیَاۚ-وَ لَا تُطِعْ مَنْ اَغْفَلْنَا قَلْبَهٗ عَنْ ذِكْرِنَا وَ اتَّبَعَ هَوٰىهُ وَ كَانَ اَمْرُهٗ فُرُطًا(۲۸)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अपनी जान को उन लोगों के साथ मानूस रख जो सुब्ह़ो शाम अपने रब को पुकारते हैं, उस  की रिज़ा चाहते हैं और तेरी आंखें दुन्यवी ज़िन्दगी की ज़ीनत चाहते हुवे उन्हें छोड़ कर औरौ पर पड़ें और उस की बात मान जिस का दिल हम ने अपनी याद से ग़ाफ़िल कर दिया और वोह अपनी ख़्वाहिश के पीछे चला और उस का काम ह़द से गुज़र गया

अस्ह़ाबे सुफ़्फ़ा को दूर मत कीजिए !

          तफ़्सीरे नई़मी में इस आयते करीमा के तह़त लिखा है : (अल्लाह पाक येह फ़रमा रहा है :) ऐ ह़बीबे मुकर्रम (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) ! आप अपने आप को तमाम उ़म्र, पूरी ह़याते त़य्यिबा, हर मेह़फ़िल, हर मजलिस, हर घड़ी, दिन, रात, सुब्ह़, शाम उन्ही लोगों के साथ रखिए जो मुख़्लिस (Sincere) हैं, जो मिस्कीन हैं, जो फ़क़ीर हैं, जो ग़रीब हैं, जो सीधे साधे हैं, जो निहायत ख़ुलूस से अपने रब्बे करीम की इ़बादत करते हैं, जो सुब्ह़ से शाम तक, जो फ़ज्र से इ़शा तक, जो पांचों वक़्तों में, जो सह़र को जाग कर, जो रात को सोने से पेहले, अल ग़रज़ ! हर वक़्त ही, हर सांस में, हर करवट में ज़िक्रे इलाही करते हैं, सारी दुन्या से मुंह मोड़ कर बस अपने मौला की ज़ात ही का इरादा रखते हैं, उसी को चाहते हैं, उसी के त़लबगार हैं । (और ऐ ह़बीबे मुकर्रम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ !) उन लोगों से दूर ही रहिए जो मुख़्तलिफ़ वफ़्द बन कर आप के पास आते हैं, आप को अपने ईमान लाने के लिए त़रह़ त़रह़ की शर्त़ें (Conditions) लगाते हैं कि या रसूलल्लाह (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) ! हम और हमारा क़बीला आप पर तब ईमान लाएंगे जब आप अपने पास से, अपनी मेह़फ़िल से इन ग़रीब अस्ह़ाबे सुफ़्फ़ा को हटा देंगे या कम अज़ कम हमारे होते हुवे इन को अपने पास न आने दें, इन की मेह़फ़िल अलग लगाइए, हमारी मजलिस अलग सजाइए, हमें इन के साथ बैठते हुवे शर्म आती है और हमारी सरदारी पर फ़र्क़ आता है, बस येही एक रुकावट है जो हम आप की नुबुव्वत व रिसालत, सदाक़त (सच्चाई), अमानत व दियानत पर अभी तक ईमान न ला सके ।  (इस पर अल्लाह पाक इरशाद फ़रमा रहा है :) ऐ मह़बूब (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) ! उन मक्कारों की बातों में मत आना और अपनी रह़मत व आ़फ़िय्यत वाली निगाहों को उन पाकीज़ा बात़िन (सुफ़्फ़ा) वालों से मत हटाना क्यूंकि आप की येह मारिफ़त वाली नज़रें ही तो उन ह़ज़रात की कुल काइनात हैं, आप की मेह़फ़िलें ही तो उन की ज़िन्दगी है, आप की जुदाई उन के लिए तक्लीफ़ का बाइ़स है । इस मौक़अ़ पर येह आयते करीमा नाज़िल हुई और नबिय्ये करीम, साह़िबे ख़ुल्के़ अ़ज़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को



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