$header_html

Book Name:Faizan-e-Ashabe Suffah

ख़िदमते अक़्दस में ह़ाज़िर हो कर दीन के मुतअ़ल्लिक़ सुवालात (Questions) करते और क़ुरआने करीम सीखते, इस त़रह़ इन्हों ने दीन की समझ बूझ और बहुत सा इ़ल्म भी ह़ासिल कर लिया बाज़ अवक़ात ऐसा भी होता कि नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ आराम फ़रमा रहे होते, तो येह ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के पास चले जाते नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इन से बड़ी मह़ब्बत फ़रमाते थे (फै़ज़ाने सिद्दीके़ अक्बर, . 148, मुलख़्ख़सन)

          ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन सई़द बिन आ़स رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ का नाम ज़मानए जाहिलिय्यत में ह़कम था, रसूले ख़ुदा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इन का नाम "अ़ब्दुल्लाह" रखा, येह भी सुफ़्फ़ा वालों में से थे ज़मानए जाहिलिय्यत में येह कातिब (लिखाई का काम करने वाले) थे, (इस्लाम लाने के बाद) नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इन्हें ह़ुक्म फ़रमाया कि मदीना में लोगों को लिखना सिखाएं (اسد الغابۃ ،عبد اللہ بن سعید بن العاصی،۳/۲۶۶ملخصا)

इ़ल्म सीखो और सिखाओ

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! سُبْحٰنَ اللہ ! यक़ीनन अगर जज़्बा सच्चा हो, तो मन्ज़िल की त़रफ़ रेहनुमाई करता है सुफ़्फ़ा वाले सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان का इ़ल्मे दीन सीखने का जज़्बा चूंकि सच्चा था, इस लिए वोह दिलचस्पी और इस्तिक़ामत के साथ इस पर गामज़न रहे, फ़ाक़ों पर फ़ाके़ करते रहे, भूक और तंगी बरदाश्त करते रहे लेकिन अपने मक़्सद (Purpose) से पीछे हटे   ग़ौर कीजिए ! एक त़रफ़ सुफ़्फ़ा वाले सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان का इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने का ऐसा जज़्बा था कि खाने, पीने का कोई ख़ास इन्तिज़ाम मौजूद नहीं, ज़रूरिय्याते ज़िन्दगी का सामान नहीं, बदन ढांपने के लिए पूरे कपड़े नहीं लेकिन फिर भी ख़ूब शौक़ और लगन से इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने में मसरूफ़ रेहते थे जब कि हमारा ह़ाल येह है कि खाने, पीने की हर त़रह़ की सहूलिय्यात हमारे पास मौजूद हैं, इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने के आसान ज़राएअ़ भी मौजूद हैं मगर अफ़्सोस ! हम सिर्फ़ नफ़्सो शैत़ान के बेहकावे में कर और ग़फ़्लत सुस्ती के सबब इस अ़ज़ीम सआ़दत से मह़रूम हैं, यहां तक कि फ़र्ज़ उ़लूम और दुरुस्त मख़ारिज के साथ क़ुरआने पाक सीखने के लिए भी हम वक़्त नहीं निकालतीं

          याद रखिए ! इन्सान जब तक किसी काम को करने के लिए ज़ेह्नी त़ौर पर तय्यार हो, वोह काम कितना ही आसान क्यूं हो, मुश्किल लगता है मगर जब उस काम को करने का पुख़्ता ज़ेहन बना लिया जाए और उस के लिए भरपूर कोशिश की जाए, तो मुश्किल से मुश्किल काम भी आसान हो जाता है लिहाज़ा इ़ल्मे दीन की अहम्मिय्यत (Importance) को समझिए और दुन्या आख़िरत की बेहतरी के लिए इस जज़्बे को अ़मली जामा पेहनाते हुवे इ़ल्मे दीन सीखने में मश्ग़ूल हो जाइए

 



$footer_html