Book Name:Ummat e Mustafa Ki Khasusiyaat
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! اِنْ شَآءَ اللّٰہ आज के बयान में हम उम्मते मुस्त़फ़ा की ख़ुसूसिय्यात, फ़ज़ाइलो कमालात, उम्मते मह़बूब की अफ़्ज़लिय्यत की वज्ह और नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की अपनी उम्मत से मह़ब्बतो शफ़्क़त के चन्द वाक़िआ़त सुनेंगी । आइए ! पेहले उम्मते मुस्त़फ़ा के फ़ज़ाइल पर मुश्तमिल एक ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ सुनती हैं । चुनान्चे,
तौरात में उम्मते मुह़म्मदिय्या के फ़ज़ाइल
मक्तबतुल मदीना की बहुत ही प्यारी किताब "अल्लाह वालों की बातें" जिल्द 5, सफ़ह़ा नम्बर 516 पर है : ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام ने अ़र्ज़ की : ऐ मेरे मौला ! मैं ने तौरात में एक ऐसी उम्मत का ज़िक्र पाया है जो सब उम्मतों से बेहतर (Better) होगी, लोगों को भलाई का ह़ुक्म देगी और बुराई से मन्अ़ करेगी, वोह पेहले और बाद वाली तमाम किताबों पर ईमान लाएगी, ह़त्ता कि एक आंख वाले दज्जाल को भी क़त्ल करेगी । ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام ने अ़र्ज़ की : ऐ मेरे पाक परवर दगार ! उसे मेरी उम्मत बना दे । अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया : ऐ मूसा ! वोह अह़मदे मुज्तबा (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की उम्मत है । ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام ने अ़र्ज़ की : ऐ मेरे परवर दगार ! मैं ने एक ऐसी उम्मत का ज़िक्र पाया जिस के लोग अल्लाह पाक की बहुत ह़म्द करेंगे, सूरज का ख़याल रखेंगे । (यानी नमाज़ और रोज़ों की वज्ह से हमेशा सूरज के त़ुलूअ़ व ग़ुरूब का ह़िसाब रखेंगे । इस्लामी नमाज़ें, इफ़्त़ार, सह़री तो सूरज से हैं मगर ख़ुद रोज़े, ई़दें, ह़ज वग़ैरा चांद से, इस लिए मुसलमान दोनों का ह़िसाब रखते हैं और कोई क़ौम येह दोनों काम नहीं करती । (मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 35, मुल्तक़त़न) और मन्सबे ह़ुकूमत व इमामत पर फ़ाइज़ होंगे, जब किसी काम का इरादा करेंगे, तो कहेंगे : اِنْ شَآءَ اللّٰہ हम इस काम को करेंगे । ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام ने अ़र्ज़ की : ऐ मेरे परवर दगार ! उसे मेरी उम्मत बना दे । अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया : ऐ मूसा ! वोह अह़मदे मुज्तबा (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की उम्मत है । ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام ने अ़र्ज़ की : ऐ रब्बे करीम ! मैं ने तौरात में ऐसी उम्मत का ज़िक्र पाया जिन की दुआ़एं क़बूल होंगी और उन के ह़क़ में दुआ़एं क़बूल की जाएंगी, उन की सिफ़ारिश क़बूल होगी और उन के ह़क़ में सिफ़ारिश क़बूल की जाएगी । येह केह कर ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام ने अ़र्ज़ की : इलाही ! तू उन्हें मेरी उम्मत बना दे । अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया : ऐ मूसा ! वोह अह़मदे मुज्तबा, मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की उम्मत है ।