Book Name:Museebaton Per Sabr Ka Zehin Kaisey Banay
मुसीबतों पर सब्र का ज़ेहन बनाने के 8 त़रीके़
﴾1﴿...जब भी कोई मुसीबत व परेशानी आ जाए, हमें घबरा कर रब्बे करीम की बारगाह में रुजूअ़ कर के कसरत से तौबा व इस्तिग़फ़ार करना चाहिये । ज़बान तो ज़बान दिल में भी ऐसी बात नहीं लानी चाहिये कि मैं ने तो किसी को कोई नुक़्सान नहीं पहुंचाया, मैं तो सब के साथ अच्छाई करता हूं, आख़िर "क्या ख़त़ा मुझ से ऐसी हुई है जिस की मुझ को सज़ा मिल रही है !" ऐसी नादानी भरी बातें सोचने के बजाए आ़जिज़ी भरा मदनी ज़ेहन बनाना चाहिये । अपने आप को गुनाहगार तसव्वुर करते हुवे हर ह़ाल में अल्लाह करीम का शुक्र अदा करना चाहिये कि मैं तो सख़्त तरीन मुजरिम होने की वज्ह से शदीद अ़ज़ाब का ह़क़दार हूं, मुझ पर आई हुई मुसीबत अगर मेरे गुनाहों की सज़ा है, तो मैं बहुत ही सस्ता छूट रहा हूं, वरना दुन्या के बजाए आख़िरत में दोज़ख़ की सज़ा मिली, तो मैं कहीं का न रहूंगा ।
﴾2﴿...रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के मुबारक अस्ह़ाब عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان पर ढाए जाने वाले ज़ुल्म और आज़माइशों को याद करना भी मुसीबतों पर सब्र का ज़ेहन बनाने में बेह़द मुफ़ीद है । रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के अस्ह़ाब عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان को किस किस त़रह़ से सताया गया । आइये ! इस की चन्द दर्दनाक झल्कियां मुलाह़ज़ा कीजिये । चुनान्चे,
जब रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने मक्के की वादियों में लोगों को ख़ुदाए पाक की इ़बादत की त़रफ़ बुलाना शुरूअ़ फ़रमाया, तो शिर्क व कुफ़्र की फ़ज़ाओं में परवान चढ़ने वालों को येह बात सख़्त ना गवार गुज़री और वोह नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की जान के दुश्मन हो गए, रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के रास्ते में कांटे बिछाए, नाज़ुक व मुबारक जिस्म पर पथ्थर बरसाए, तक्लीफ़ों और मुसीबतों के पहाड़ तोड़े, ता'नों और बद कलामी का बाज़ार ख़ूब गर्म किया फिर इसी पर बस नहीं की बल्कि जो भी रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर ईमान लाने की सआ़दत ह़ासिल करता, येह बदबख़्त लोग उसे भी त़रह़ त़रह़ की तक्लीफ़ों और मुसीबतों में गिरिफ़्तार कर के इस्लाम से फेरने की कोशिशों में लग जाते । किसी को तन्नूर की त़रह़ गर्मा गर्म सह़राए अ़रब की तेज़ धूप में पीठ पर कोड़े मार मार कर ज़ख़्मी कर के जलती हुई रेत पर पीठ के बल लिटाते और सीने पर इतना भारी पथ्थर रख देते कि करवट न बदलने पाए, किसी के जिस्म को लोहे की गर्म सलाख़ों से दाग़ते, किसी को पानी में इस क़दर डुब्कियां देते कि उन का दम घुटने लगता और किसी को चटाई में लपेट कर नाक में धुवां देते जिस से सांस लेना मुश्किल हो जाता । ग़रज़ ! ऐसे ऐसे ज़ुल्म ढाए कि अगर उन की जगह पहाड़ होता, तो शायद वोह डगमगाने लगता लेकिन क़ुरबान जाइये उन सब्रो रिज़ा के पैकरों पर ! जिन्हों ने मुसीबतों और परेशानियों से घबरा कर न तो बे सब्री का मुज़ाहरा किया, न चीख़ो पुकार की और न ही किसी के आगे अपनी तकालीफ़ का इज़्हार किया बल्कि अल्लाह पाक की रिज़ा पर राज़ी रहे, मुसीबतों और पेरशानियों का डट कर मुक़ाबला किया और अल्लाह पाक का ख़ास क़ुर्ब ह़ासिल किया ।