Book Name:Museebaton Per Sabr Ka Zehin Kaisey Banay
और धोके का सहारा ले कर किसी को नुक़्सान पहुंचाना कोई गुनाह नहीं ? क्या शराब पीना, तकब्बुर करना और ख़ुद को सब से अच्छा समझना कोई गुनाह नहीं ? क्या ज़कात के माल में धोके बाज़ी कर के अपनी आख़िरत को बरबाद करना कोई गुनाह नहीं ? क्या चोरी करना कोई गुनाह नहीं ? क्या ख़ुदकुशी कर के अपनी जान को हमेशा के लिये हलाकत में डालना कोई गुनाह नहीं ? क्या मर्दों का औ़रतों की त़रह़ और औ़रतों का मर्दों की त़रह़ फै़शन इख़्तियार करना कोई गुनाह नहीं ? क्या पेशाब के छींटों से न बचना कोई गुनाह नहीं ? क्या दिखलावा कर के अपने नेक आ'माल को ज़ाएअ़ कर देना कोई गुनाह नहीं ? क्या लोगों की छुपी हुई बातें सुनना कोई गुनाह नहीं ? क्या औ़रत का शौहर की ना फ़रमानी करना कोई गुनाह नहीं ? क्या अपने रिश्तेदारों से बिला उ़ज्रे़ शरई़ तअ़ल्लुक़ात ख़त्म करना कोई गुनाह नहीं ? क्या चुग़ली के ज़रीए़ मह़ब्बतों को चुरा लेना कोई गुनाह नहीं ? क्या नौह़ा करना किसी के मरने पर चीख़ना, चिल्लाना, कपड़े फाड़ना, बाल नोचना, सीना पीटना और ना शुक्री के कलिमात ज़बान पर लाना कोई गुनाह नहीं ? क्या मुसलमान को बिला उ़ज्रे़ शरई़ तक्लीफ़ देना और बुरा भला कहना कोई गुनाह नहीं ? क्या औलियाउल्लाह को तक्लीफ़ देना और उन से दुश्मनी रखना कोई गुनाह नहीं ? क्या मर्द का रेश्मी लिबास पहनना, सोना (Gold) इस्ति'माल करना कोई गुनाह नहीं ? مَعَاذَ اللّٰہ क्या सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان के बारे में बक्वासात करना कोई गुनाह नहीं ? क्या किसी मुसलमान के बारे में कीना (या'नी दिल में दुश्मनी छुपा कर) रखना कोई गुनाह नहीं ? क्या जुवे के ज़रीए़ किसी के माल पर क़ब्ज़ा करना कोई गुनाह नहीं ?
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! यहां सिर्फ़ चन्द गुनाहों को बयान किया गया है, इस के इ़लावा और न जाने कितने गुनाह होते होंगे फिर भी हम कहें कि "आख़िर मुझ से ऐसा कौन सा गुनाह हुवा है जिस की मुझ को सज़ा मिल रही है !" اَلْاَمَان وَالْحَفِیْظ । अल्लाह पाक हमारी ह़ालते ज़ार पर करम फ़रमाए । اٰمِیْن
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
मुसीबतों पर सब्र का ज़ेहन कैसे बने ?
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! याद रखिये ! शिक्वे, शिकायात करने और बे सब्री करने से मुसीबत तो जाने से रही, उल्टा सब्र के ज़रीए़ हाथ आने वाला अ़ज़ीम सवाब ज़ाएअ़ हो जाता है, जो ख़ुद एक बहुत बड़ी मुसीबत है । लिहाज़ा मुसीबत चाहे बड़ी हो या छोटी, हमें चाहिये कि हम सब्र का दामन मज़बूत़ी से थामे रहें और ऐसे त़रीके़ इख़्तियार करें जिन की बरकत से बे सब्री से हमारी जान छूट जाए, हम मुसीबतों का मुक़ाबला करने में कामयाब हो जाएं और हमारा शुमार भी मुसीबत पर सब्र और शुक्र करने वाले ख़ुश नसीबों में होने लग जाए । मुसीबतों पर सब्र का ज़ेहन बनाने के लिये चन्द त़रीके़ पेशे ख़िदमत हैं । आइय ! इन्हें तवज्जोह के साथ सुन कर इन पर अ़मल की निय्यत करते हैं ।