Museebaton Per Sabr Ka Zehin Kaisey Banay

Book Name:Museebaton Per Sabr Ka Zehin Kaisey Banay

عَلَیْہِم اَجْمَعِیْن के ज़िक्रे ख़ैर पर मुश्तमिल शजरह शरीफ़ पढ़ने, सुनने का शरफ़ ह़ासिल होता है और बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِم اَجْمَعِیْن का तज़किरा करना बाइ़से रह़मत है । चुनान्चे, ह़ज़रते सय्यिदुना सुफ़्यान बिन उ़यैना رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : नेक लोगों के ज़िक्र के वक़्त रह़मत उतरती है । (حِلْیَۃُ الْاَوْلِیَاء، ۷ / ۳۳۵، رقم:۱۰۷۵۰)

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِم اَجْمَعِیْن के ज़िक्रे ख़ैर पर मुश्तमिल इस मुबारक शजरे की बरकत से कई आ़शिक़ाने रसूल के रुके हुवे काम बन जाते हैं । आइये ! बत़ौरे तरग़ीब एक मदनी बहार सुनिये और झूमिये । चुनान्चे,

घरेलू झगड़े ख़त्म हो गए

          बाबुल मदीना की एक इस्लामी बहन के घर में नाचाक़ियों ने डेरे डाल रखे थे, आए दिन लड़ाई, झगड़ों का सिलसिला रहता जिस की वज्ह से घर का सुकून बरबाद हो जाता था, वोह इस सूरते ह़ाल से सख़्त परेशान थीं, घर में अमन क़ाइम होने का कोई रास्ता न दिखाई देता था । इसी दौरान पीरो मुर्शिद,

अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की तवज्जोह से उन्हें शजरए क़ादिरिय्या, रज़विय्या, ज़ियाइय्या, अ़त़्त़ारिय्या पढ़ने का ख़याल आया, बस फिर क्या था ! उन्हों ने शजरह शरीफ़ को घरेलू नाचाक़ियां दूर करने की निय्यत से पढ़ना शुरूअ़ कर दिया, शजरए क़ादिरिय्या, रज़विय्या, ज़ियाइय्या, अ़त़्त़ारिय्या पढ़ने की बरकत से उन के घरेलू झगड़े ख़त्म हो गए और "घर अमन का गहवारा" बन गया ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! याद रहे ! मुसीबत बसा अवक़ात मोमिन के ह़क़ में रह़मत हुवा करती है, लिहाज़ा अगर हम मुसीबत पर सब्र करने में कामयाब हो गए, तो क़ियामत के दिन इस के ऐसे अ़ज़ीम सवाब के ह़क़दार हो जाएंगे जिस को देख कर लोग रश्क करेंगे । चुनान्चे,

आ़फ़िय्यत वाले तमन्ना करेंगे !

          नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमान है : जब क़ियामत के दिन बीमारों और आफ़त में मुब्तला लोगों को सवाब अ़त़ा किया जाएगा, तो आ़फ़िय्यत वाले तमन्ना करेंगे कि काश ! दुन्या में हमारी खालें क़ैंचियों से काटी जातीं । (ترمذی،کتاب الزھد،۴ /۱۸۰،حدیث: ۲۴۱۰) या'नी तमन्ना व आरज़ू करेंगे कि हम पर दुन्या में ऐसी बीमारियां आई होतीं जिन में ऑप्रेशन के ज़रीए़ हमारी खालें काटी जातीं ताकि हम को भी वोह सवाब आज मिलता जो दूसरे बीमारों और आफ़त ज़दों को मिल रहा है । (मिरआतुल मनाजीह़, 2 / 424)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ईमान के साथ ज़िन्दगी गुज़ारने वाला ही कामयाब है । शैत़ान हर वक़्त ईमान ज़ाएअ़ करवाने की कोशिश में लगा रहता है, मुसीबत आने पर सब्र करते हुवे हर ह़ाल में रब्बे करीम की रिज़ा पर राज़ी रहना चाहिये । अल्लाह पाक जिसे चाहे बे ह़िसाब जन्नत में दाख़िल फ़रमाए और जिसे चाहे इम्तिह़ान में मुब्तला कर के सब्र