Book Name:Lalach Ka Anjaam
वुजूद भी कुछ इस त़रह़ की ख़्वाहिशात दिल में मचलती रहती हैं कि ऐ काश ! मैं भी फ़ुलां की त़रह़ सेठ होता, ऐ काश ! फ़ुलां की त़रह़ मेरा भी आ़लीशान बंगला होता, ऐ काश ! मैं भी फ़ुलां कि त़रह़ मुख़्तलिफ़ मुल्कों और शहरों की सैरो तफ़रीह़ पर क़ुदरत पाता, ऐ काश ! मैं भी फ़ुलां की त़रह़ आ़लीशान ज़िन्दगी गुज़ारता, ऐ काश ! मैं भी फ़ुलां की त़रह़ मन्सब व वज़ारत के मज़े लूटता, ऐ काश ! मैं भी फुलां की त़रह़ जाएदादों का मालिक होता, ऐ काश ! मेरे पास भी फ़ुलां की त़रह़ जदीद तरीन कारें, स्कूटरें और दीगर सहूलिय्यात होतीं, ऐ काश ! फुलां की त़रह़ मेरी शोहरत के भी डंके बजने लग जाएं वग़ैरा वग़ैरा ।
हम ग़ौर करें ! कभी नेक लोगों और सुन्नतों पर अ़मल करने वालों को देख कर भी क्या हमारे दिल में सुन्नतों पर अ़मल और नेकियां करने का लालच पैदा हुवा ? आ़शिक़ाने रसूल को ख़ौफे़ ख़ुदा व इ़श्के़ मुस्त़फ़ा में रोता देख कर क्या हम ने भी उन जैसा बनने की तमन्ना की ? मक्का व मदीना जाने वालों को देख कर क्या हमारे अन्दर भी ज़ियारते ह़-रमैने शरीफै़न के लिये बे क़रारी पैदा हुई ? किसी को फ़र्ज़ नमाज़ों, तहज्जुद, इशराक़ व चाश्त, अव्वाबीन और सलातुत्तौबा पढ़ता देख कर क्या हमारे अन्दर भी इन नमाज़ों के एहतिमाम का जज़्बा बेदार हुवा ? किसी को तिलावते क़ुरआन करता देख कर क्या हमारे दिल में भी तिलावते क़ुरआन का लालच पैदा हुवा ? क़ुरआने करीम याद करने वालों और इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने वालों को देख कर क्या हमारे अन्दर भी क़ुरआन याद करने और इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने की तड़प पैदा हुई ? मदनी इनआ़मात पर अ़मल करने वालों और मदनी क़ाफ़िलों के मुसाफ़िरों को देख कर क्या हमारे दिल में भी मदनी इनआ़मात पर अ़मल और मदनी क़ाफ़िलों में सफ़र करने की कुढ़न पैदा हुई ? 12 मदनी काम करने, सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त और मदनी मुज़ाकरों में शिर्कत करने वाले आ़शिक़ाने रसूल को देख कर क्या हमारे अन्दर भी इन मदनी कामों को करने का लालच पैदा हुवा ?
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हम में से बा'ज़ वोह ख़ुश नसीब भी होंगे जो मुख़्तलिफ़ तन्ज़ीमी ज़िम्मेदारियों पर ख़िदमते दीन की सआ़दत पा रहे हैं । हम सब ग़ौर करें कि जो मेरी ज़िम्मेदारी है, उस के मुत़ाबिक़ क्या मैं वक़्त दे पा रहा हूं कि नहीं ? अपनी ज़िम्मेदारी के तक़ाज़े पूरे कर पा रहा हूं कि नहीं ? मेरे शहर / अ़लाके़ / गांव में 12 मदनी कामों की धूम धाम है कि नहीं ? नए नए इस्लामी भाइयों पर इनफ़िरादी कोशिश कर के उन को भी मदनी माह़ोल से वाबस्ता कर के आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी का मदनी काम करने वाला बनाने का जज़्बा है कि नहीं ? अगर जवाब नफ़ी में हो, तो हमें इस का भी लालच होना चाहिये कि ऐ काश ! मेरी ज़िम्मेदारी के अ़र्से में हर त़रफ़ सुन्नतों की मदनी बहारें आ जाएं, मस्जिदें नमाज़ियों से भर जाएं, हर त़रफ़ मदनी क़ाफ़िलों की धूम धाम हो जाए, मेरे ज़िम्मे जो अह्दाफ़ हैं वोह पूरे करने में कामयाब हो जाऊं । अल्लाह करे हमें 12 मदनी कामों को आगे से आगे बढ़ाने का लालच नसीब हो जाए ।