Lalach Ka Anjaam

Book Name:Lalach Ka Anjaam

इन्तिहाई भयानक होता है । अल ग़रज़ ! लालच की तबाहकारियां इस क़दर ज़ियादा हैं कि اَلْاَمَان وَالْحَفِیْظ । लिहाज़ा अ़क़्लमन्दी इसी में है कि हम लालच और दूसरों के माल पर नज़र रखने से बचते हुवे क़नाअ़त और सादगी को अपनाएं, यूं हमारी ज़िन्दगी (Life) भी पुर सुकून गुज़रेगी और दुन्या व आख़िरत में भी हमें इस की ख़ूब ख़ूब बरकतें नसीब होंगी । बयान कर्दा ह़िकायत से येह मदनी फूल भी मिला कि किसी के ख़िलाफ़ साज़िश करने का नतीजा बहुत ही बुरा निकलता है क्यूंकि जो किसी के लिये गढ़ा खोदता है, आख़िरे कार एक दिन वोह ख़ुद ही उस गढ़े में गिर जाता है । चुनान्चे,

जो किसी के लिये गढ़ा ख़ोदे, तो ख़ुद ही उस में गिरता है !

          ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا से रिवायत है कि एक मरतबा ह़ज़रते का' رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने उन से कहा : तौरात शरीफ़ में है कि जो शख़्स अपने भाई के लिये गढ़ा खोदता है, वोह ख़ुद उस में गिर जाता है । ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا ने फ़रमाया : इसी त़रह़ का मज़मून तो क़ुरआने करीम में भी मौजूद है । ह़ज़रते का' رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने पूछा : कहां है ? आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने इरशाद फ़रमाया : येह आयत पढ़ लो !

وَ لَا یَحِیْقُ الْمَكْرُ السَّیِّئُ اِلَّا بِاَهْلِهٖؕ     (پ۲۲،فاطر:۴۳)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और बुरा मक्रो फ़रेब अपने चलने वाले ही पर पड़ता है ।

( تفسیر قرطبی،فاطر، تحت الآیۃ: ۴۳، ۷/۲۶۱ملخصاً)

किसी के ख़िलाफ़ साज़िश न करो !

          इमाम ज़ुहरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से रिवायत है : रसूले बे मिसाल, बीबी आमिना के लाल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : तुम किसी के ख़िलाफ़ साज़िश न करो और न ही किसी साज़िश करने वाले की मदद करो क्यूंकि अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है :

وَ لَا یَحِیْقُ الْمَكْرُ السَّیِّئُ اِلَّا بِاَهْلِهٖؕ     (پ۲۲،فاطر:۴۳)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और बुरा मक्रो फ़रेब अपने चलने वाले ही पर पड़ता है ।

( تفسیر قرطبی، فاطر، تحت الآیۃ: ۴۳، ۷/۲۶۱)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

        प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! याद रखिये ! ह़िर्स और लालच दो ऐसे अल्फ़ाज़ हैं जिन का मा'ना एक ही है । "लालच" उर्दू ज़बान का जब कि "ह़िर्स" अ़रबी ज़बान का लफ़्ज़ है । ह़िर्स व लालच किसी चीज़ की मज़ीद ख़्वाहिश करने का नाम है और येह किसी भी चीज़ की हो सकती है । जैसा कि :

ह़िर्स की ता'रीफ़

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इरशाद फ़रमाते हैं : किसी चीज़ से जी न भरने और हमेशा ज़ियादती की ख़्वाहिश रखने को "ह़िर्स" और ह़िर्स रखने वाले को "ह़रीस" (Greedy) कहते हैं । (मिरआतुल मनाजीह़, 7 / 86, बित्तग़य्युर) लिहाज़ा