Book Name:Lalach Ka Anjaam
मज़ीद माल की ख़्वाहिश रखने वाले को "माल का ह़रीस" कहेंगे, मज़ीद खाने की ख़्वाहिश रखने वाले को "खाने का ह़रीस" कहा जाएगा, नेकियों में इज़ाफे़ के तमन्नाई (या'नी ख़्वाहिश करने वाले) को "नेकियों का ह़रीस" जब कि गुनाहों का बोझ बढ़ाने वाले को "गुनाहों का ह़रीस" कहेंगे ।
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "जन्नती ज़ेवर" के सफ़ह़ा नम्बर 111 पर लिखा है : लालच और ह़िर्स का जज़्बा ख़ूराक, लिबास, मकान, सामान, दौलत, इ़ज़्ज़त, शोहरत, अल ग़रज़ ! हर ने'मत में हुवा करता है । (जन्नती ज़ेवर, स. 111, मुलख़्ख़सन) मगर आज हम जिस ह़िर्स व लालच के बारे में सुनेंगे इस से मुराद बुरी लालच है । लालची इन्सान निहायत क़ाबिले रह़म होता है, इस लिये कि होश्यार लोग त़रह़ त़रह़ से लालच दिला कर इसे बे वुक़ूफ़ बना कर अपने काम निकलवाते हैं, मसलन कभी कोई नौकरी का झांसा दे कर इस से पैसे बटोरता है, कभी येह मुख़्तलिफ़ इदारों और कम्पनियों के पुर कशिश पेकेजिज़ के जाल में फंस जाता है, कभी इनआ़म का लालच इसे ज़िन्दगी भर की जम्अ़ पून्जी से मह़रूम करवा देता है, कभी येह मज़ीद अच्छी नौकरी के चक्कर में लगी बंधी नौकरी (Job) से भी हाथ धो बैठता है, कभी रातों रात अमीरो कबीर बनने का लालच इसे ले डूबता है, दौलत का लालच कभी इसे मुख़्तलिफ़ मुक़द्दमात में फंसवा देता है, कभी येह ओ़ह्दा व मन्सब के लालच में मुब्तला हो कर रिशवत के लेन देन के गुनाह में जा पड़ता है मगर जब आंख खुलती है, तो इसे अपने किये पर बहुत सख़्त पछतावा होता है लेकिन "अब पछताए क्या होवत जब चिड़ियां चुग गईं खेत !"
आइये ! ऐसे ही एक बे वुक़ूफ़ और लालची शख़्स का वाक़िआ़ सुनते हैं जिसे इ़ज़्ज़त की दाल रोटी नसीब थी मगर अच्छा खाने की ह़िर्स ने उसे एक मालदार दोस्त के तल्वे चाटने पर मजबूर कर दिया, जिस की वज्ह से न सिर्फ़ उस की इ़ज़्ज़त ख़राब हो गई बल्कि उसे ज़िल्लतो रुस्वाई का सामना भी करना पड़ा । चुनान्चे,
दौलत के लालच में दोस्ती करने का अन्जाम
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "ह़िर्स" के सफ़ह़ा नम्बर 218 पर लिखा है : एक ग़रीब आदमी के 3 बेटे थे, जो कुछ उसे दाल रोटी नसीब होती ख़ुद भी खाता और उन्हें भी खिलाता । उन में से एक बेटा बाप की ग़ुर्बत और दाल रोटी से ख़ुश नहीं था, चुनान्चे, उस ने एक मालदार नौजवान से दोस्ती कर ली और अच्छा खाना मिलने के लालच में उस के घर आने जाने लगा । एक दिन उन के दरमियान किसी बात पर नाराज़ी हो गई, मालदार दोस्त ने अपनी अमीरी के ग़ुरूर में उसे ख़ूब मारा, पीटा और उस के दांत तोड़ डाले । तब वोह ग़रीब दिल ही दिल में तौबा करते हुवे कहने लगा : मेरे बाप की प्यार से दी हुई दाल रोटी इस मार धाड़ और ज़िल्लत के निवाले से बेहतर है, अगर मैं अच्छे खाने, पीने की लालच न करता, तो आज इतनी मार न खाता और मेरे दांत नहीं टूटते । (ह़िर्स, स. 218)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد