Namaz Ki Ahmiyat

Book Name:Namaz Ki Ahmiyat

          याद रखिये ! क़ियामत के दिन भी सब से पहले नमाज़ के बारे में ही सुवाल किया जाएगा । जैसा कि ह़दीसे पाक में है :  اَوَّلُ مَایُحَاسَبُ بِہِ الْعَبْدُ یَوْمَ الْقِیَامَۃِ صَلَا تُہٗ कल क़ियामत के दिन बन्दे से सब से पहले उस की नमाज़ के बारे में सुवाल होगा । अ़ल्लामा अ़ब्दुर्रऊफ़ मनावी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़्त फ़रमाते  हैं : बेशक नमाज़, ईमान की निशानी और इ़बादत की अस्ल है । (التیسیر،۱/۳۹۱)

नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की बारगाह में एक शख़्स ने ह़ाज़िर हो कर तीन बार सब से अफ़्ज़ल अ़मल के बारे में सुवाल किया । तो रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने तीनों बार येही जवाब दिया : नमाज़ सब से अफ़्ज़ल अ़मल है । (مسند امام احمد، مسند عبداللّٰہ بن عمرو بن العاص ،۲/۵۸۰، حدیث:۶۶۱۳،ملخصاً)

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! हमें भी नमाज़ की अहम्मिय्यत को समझते हुवे न सिर्फ़ ख़ुद पांचों नमाज़ें पाबन्दी के साथ मस्जिद की पहली सफ़ में, तक्बीरे ऊला के साथ, जमाअ़त से अदा करनी चाहियें बल्कि अपने समझदार बच्चों को भी मस्जिद साथ ले कर जाना चाहिये, ना समझ को नहीं । फ़तावा रज़विय्या, जिल्द 16, सफ़ह़ा नम्बर 434 पर लिखा है : मस्जिद में ना समझ बच्चों को ले जाने की मुमानअ़त है । ह़दीस में है : جَنِّبُوْامَسَاجِدَکُمْ صِبْيَانَکُمْ وَمَجَانِيْنَکُمْ अपनी मसाजिद को, अपने ना समझ बच्चों और पागलों से मह़फ़ूज़ रखो । (ابن ماجہ ،کتاب المساجد و الجماعات،باب مايکرہ في المساجد۱/۴۱۵،حدیث ۷۵۰)

        ऐ आ़शिक़ाने आ'ला ह़ज़रत ! अगर हम नमाज़ों की पाबन्दी के साथ साथ अपने समझदार बच्चों को भी मस्जिद ले कर जाएंगे, तो उन के नन्हे ज़ेहन बचपन ही से नमाज़ों की त़रफ़ माइल होने लगेंगे और फिर बड़े हो कर वोह भी नमाज़ों के आ़दी बन जाएंगे क्यूंकि जो बात बच्चों के ज़ेहन में बचपन ही से बैठ जाए, बड़े हो कर भी वोह बात उन के ज़ेह्नों में पुख़्ता हो जाती है ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

नमाज़ के बारे में 3 फ़रामीने इलाही

        प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! नमाज़ की अहम्मिय्यत जानने के बा'द भी अगर कोई नमाज़ न पढ़े, तो ऐसा इन्सान बड़ा ही नादान और अपने हाथों दोज़ख़ में जाने का सामान करने वाला है, ह़ालांकि नमाज़ पढ़ना दुन्या व आख़िरत की सआ़दतों का ज़रीआ़ है । क़ुरआने पाक में कई मक़ामात पर न सिर्फ़ नमाज़ का ह़ुक्म दिया गया है बल्कि सवाब बयान कर के इस की तरग़ीब भी दिलाई गई है । आइये ! इस बारे में तीन फ़रामीने इलाही सुनिये । चुनान्चे, पारह 6, सूरतुन्निसा की आयत नम्बर 162 में इरशाद होता है :

وَ الْمُقِیْمِیْنَ الصَّلٰوةَ وَ الْمُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَ الْمُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَ الْیَوْمِ الْاٰخِرِؕ-اُولٰٓىٕكَ سَنُؤْتِیْهِمْ اَجْرًا عَظِیْمًا۠(۱۶۲)

۶،النساء:۱۶۲)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और नमाज़ क़ाइम रखने वाले और ज़कात देने वाले और अल्लाह और क़ियामत पर ईमान लाने वाले ऐसों को अ़न क़रीब हम बड़ा सवाब देंगे ।

पारह 9, सुरतुल अन्फ़ाल की आयत नम्बर 3 और 4 में इरशाद होता है :