Namaz Ki Ahmiyat

Book Name:Namaz Ki Ahmiyat

येह कुंवां बे नमाज़ियों, बदकारी करने वालों, शराबियों, सूद ख़ोरों और मां-बाप को तक्लीफ़ देने वालों के लिये है । (बहारे शरीअ़त, 1 / 434, मुलख़्ख़सन)

दोज़ख़ का अ़ज़ाब और दुन्या की तक्लीफ़ें

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आप ने सुना कि "ग़य्य" दोज़ख़ में एक वादी है जिस की गहराई (Depth) और गर्मी सब से ज़ियादा है और दोज़ख़ की आग जब बुझने लगती है, तो इस वादी को खोल दिया जाता है जिस से दोज़ख़ की आग फिर से भड़क उठती है । ज़रा सोचिये ! इस ख़त़रनाक वादी में जब बे नमाज़ी को डाला जाएगा, तो उस का क्या बनेगा ? याद रखिये ! दोज़ख़ अल्लाह पाक के क़हरो ग़ज़ब ज़ाहिर होने की जगह है । जिस त़रह़ उस की रह़मतों और ने'मतों की कोई इन्तिहा नहीं और इन्सानी अ़क़्ल उस का अन्दाज़ा नहीं लगा सकती, इसी त़रह़ अल्लाह पाक के क़हरो ग़ज़ब की भी कोई ह़द नहीं, हर वोह तक्लीफ़ देने वाली चीज़ जिस का तसव्वुर किया जाए, मसलन किसी आले से ज़िन्दा इन्सान के नाख़ुन (Nail) खींच लेना, किसी को छुरियों या लाठियों से मारना, किसी के ऊपर गाड़ी चला कर उस की हड्डियां तोड़ देना, 'ज़ा काट कर नमक मिर्च छिड़कना, ज़िन्दा खाल (Skin) उधेड़ना, बिग़ैर बेहोश किये ऑप्रेशन करना या मुख़्तलिफ़ बीमारियों की तकालीफ़ मसलन दर्दे सर, बुख़ार, पेट का दर्द या ख़त़रनाक बीमारियां, मसलन दिल का दौरा (Heart Attack), सरत़ान (या'नी कैन्सर), गुर्दे की पथरी का दर्द, ख़ारिश और शदीद घबराहट वग़ैरा वग़ैरा जो भी अमराज़ या दुन्यवी मुसीबतें और तक्लीफे़ं जिन का तसव्वुर मुमकिन है वोह दोज़ख़ की तक्लीफ़ों के मुक़ाबले में निहायत ही मा'मूली हैं । अल ग़रज़ ! दुन्या की सारी बीमारियां और मुसीबतें किसी एक शख़्स पर जम्अ़ हो जाएं फिर भी दोज़ख़ के सब से हल्के अ़ज़ाब के बराबर नहीं हो सकतीं ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

दोज़ख़ का सब से हल्का अ़ज़ाब

          दोज़ख़ का सब से हल्का अ़ज़ाब क्या है ? इस बारे में नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : जिस को दोज़ख़ का सब से हल्का अ़ज़ाब होगा, उसे आग की जूतियां पहना दी जाएंगी जिस से उस का दिमाग़ ऐसे खौलेगा जैसे तांबे की पतीली खौलती है, वोह समझेगा कि सब से ज़ियादा अ़ज़ाब मुझ ही पर हो रहा है, ह़ालांकि उस पर सब से हल्का अ़ज़ाब है । (مسلم،کتاب الایمان،باب اھون اھل النار عذابا، ص۱۱۱، حدیث:۵۱۷ ملتقطاً)

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! दोज़ख़ के अ़ज़ाब से डर जाइये, अपने कमज़ोर जिस्मों पर तरस खाइये, सुस्ती उड़ाइये और गुनाहों से बचते हुवे नमाज़ों का एहतिमाम शुरूअ़ कर दीजिये । अफ़्सोस ! बा'ज़ लोग फ़ुज़ूल बातों और कामों में मश्ग़ूल रह कर नमाज़ें क़ज़ा कर देते हैं मगर उन्हें इस बात का एह़सास तक नहीं होता कि वोह मुसल्सल अल्लाह पाक की ना फ़रमानी कर रहे हैं । वोह रब्बे करीम तो हमें दिन रात ढेरों ने'मतें बिन मांगे अ़त़ा