Namaz Ki Ahmiyat

Book Name:Namaz Ki Ahmiyat

ने फ़रमाया : नमाज़ गुनाहों को ऐसे ही धो देती है जैसा कि पानी मैल को धोता है । (ابن ماجہ، ۲/ ۱۶۵، حدیث:۱۳۹۷)

हर नमाज़ पिछले गुनाहों का कफ़्फ़ारा है

          जो ख़ुश नसीब नमाज़ों के आ़दी होते हैं, अगर बिलफ़र्ज़ उन से एक नमाज़ से दूसरी नमाज़ के दरमियानी वक़्फे़ में गुनाह हो जाएं, तो दूसरी नमाज़ उन गुनाहों का कफ़्फ़ारा बन जाती है, या'नी दोनों नमाज़ों के दरमियान जो गुनाह हुवे हैं, अल्लाह पाक उन्हें मुआ़फ़ फ़रमा देता है । जैसा कि :

ह़ज़रते सय्यिदुना ह़ारिस رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ रिवायत करते हैं : ह़ज़रते सय्यिदुना उ़स्मान رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ एक दिन तशरीफ़ फ़रमा थे और हम भी बैठे थे कि मोअज़्ज़िन आ गया । ह़ज़रते सय्यिदुना उ़स्मान رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने पानी मंगवा कर वुज़ू किया फिर फ़रमाया : मैं ने नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को इसी त़रह़ वुज़ू करते देखा है । मैं ने सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को येह इरशाद फ़रमाते हुवे भी सुना : जो शख़्स मेरे इस वुज़ू की त़रह़ वुज़ू करे फिर वोह ज़ोहर की नमाज़ पढ़ ले, तो अल्लाह पाक उस के गुनाहों को मुआ़फ़ फ़रमा देता है, या'नी वोह गुनाह जो फ़ज्र और इस ज़ोहर की नमाज़ के दरमियान हुवे हों फिर जब अ़स्र की नमाज़ पढ़ता है, तो ज़ोहर और अ़स्र के दरमियान के गुनाहों को मुआ़फ़ फ़रमा देता है फिर जब मग़रिब की नमाज़ पढ़ता है, तो अ़स्र और मग़रिब के दरमियान के गुनाहों को मुआ़फ़ फ़रमा देता है फिर इ़शा की नमाज़ पढ़ता है, तो उस के और मग़रिब के दरमियान के गुनाहों को मुआ़फ़ फ़रमा देता है फिर हो सकता है कि रात भर वोह लेट कर ही गुज़ार दे फिर जब उठ कर वुज़ू करे और फ़ज्र की नमाज़ पढ़े, तो इ़शा और फ़ज्र के दरमियान के गुनाहों की बख़्शिश हो जाती है और येही वोह नेकियां हैं जो बुराइयों को दूर कर देती हैं । (الاحادیث المختارۃ،ج١،ص٤٥٠،حدیث ٣٢٤,ملتقطا)

नमाज़ में शिफ़ा है

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! जो ख़ुश नसीब पांचों नमाज़ें अदा करते हैं, अल्लाह पाक इस की बरकत से उन्हें बीमारियों से शिफ़ा अ़त़ा फ़रमाता है । आज हमारे यहां ऐसी नई नई बीमारियां ज़ाहिर हो रही हैं जिन का आज से पहले नाम तक न सुना था, उन के इ़लाज के लिये लाखों रुपये ख़र्च करने के बा वुजूद भी बीमारियां बढ़ती ही जाती हैं । अगर हम अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के फ़रामीन पर अ़मल करते हुवे नमाज़ की पाबन्दी शुरूअ़ कर दें, तो اِنْ شَآءَ اللہ बीमारियों से नजात मिल सकती है । जैसा कि :

          प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने आ़लीशान है : اِنَّ فِی الصَّلٰوۃِ شِفَاءً बेशक नमाज़ में शिफ़ा है । (ابن ماجہ،باب الصلاۃ شفاء،۴/ ۹۸،حدیث: ۳۴۵۸) लिहाज़ा हमें चाहिये कि बीमार हों या तन्दुरुस्त हर ह़ाल में न सिर्फ़ ख़ुद नमाज़ की पाबन्दी करें बल्कि अपने घर वालों को भी नमाज़ का आ़दी बनाएं ।