Darood-o-Salam Kay Fazail

Book Name:Darood-o-Salam Kay Fazail

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : उस दिन आदमी अपने भाई से भागेगा और अपनी मां और अपने बाप और अपनी बीवी और अपने बेटों से ।

          ऐसे मुश्किल ह़ालात में जब कोई ह़ाल पूछने वाला न होगा, तमाम अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام की त़रफ़ से भी "اِذْھَبُـوْا اِلٰی غَیْرِی" या'नी "किसी और के पास जाओ" का जवाब मिलेगा, ऐसे ह़ालात में एक ही हस्ती होगी जो हम गुनाहगारों की ना उम्मीदी को उम्मीद में बदल देगी, हमारी टूटी हुई उम्मीदों का सहारा (Support) होगी, जिस के लबों पर "اَنَالَھَا" या'नी "शफ़ाअ़त के लिये मैं हूं" की सदाएं होंगी । जी हां ! वोह मुबारक हस्ती प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ाते गिरामी होगी जो बारगाहे इलाही में सजदा कर के अपने गुनहगार उम्मतियों की शफ़ाअ़त करेंगे ।

ह़ज़रते सय्यिदुना रुवैफ़अ़ बिन साबित رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से रिवायत है : प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : जिस शख़्स ने येह दुरूद शरीफ़ पढ़ा : اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّاَنْزِلْہُ الْمَقْعَدَ الْمُقَرَّبَ عِنْدَکَ یَوْمَ الْقِیَامَۃ, तो उस के लिये मेरी शफ़ाअ़त वाजिब हो गई । (معجم کبیر،رویفع بن ثابت الانصاری،۵  / ۲۶،حدیث :۴۴۸۰)

سُبْحٰنَ اللّٰہ ! ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आप ने सुना कि दुरूदे पाक किस क़दर मुख़्तसर और अ़ज़ीमुश्शान अ़मल है मगर इस का सवाब कितना बेहतरीन है कि इस की बरकत से ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की शफ़ाअ़त वाजिब होती है, लिहाज़ा शफ़ाअ़ते मुस्त़फ़ा का ह़क़दार बनने के लिये दुरूदे पाक की कसरत कीजिये । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल में मुख़्तलिफ़ मवाक़ेअ़ पर दुरूदे पाक की तरग़ीब दिलाई जाती है और दुरूद शरीफ़ पढ़ने की तरग़ीब तो मदनी इनआ़मात में भी शामिल है । चुनान्चे,

मदनी इनआ़म नम्बर 5 में है : क्या आज आप ने अपने शजरे के कुछ न कुछ अवराद और कम अज़ कम 313 बार दुरूद शरीफ़ पढ़ लिये ? इसी त़रह़ मदनी इनआ़म नम्बर 49 में फ़ुज़ूल बात निकल जाने की सूरत में शर्मिन्दा हो कर दुरूद शरीफ़ पढ़ने की तरग़ीब मौजूद है । लिहाज़ा दुरूदे पाक की आ़दत बनाने के लिये मदनी इनआ़मात पर अ़मल कीजिये, दुरूदो सलाम के फ़ज़ाइल