Book Name:Aulad Ki Tarbiyat Aur Walidain Ki Zimadariyan
मोबाइल और सोशल मीडिया (Social Media) के ज़रीए़ ना मह़रमों से नाजाइज़ तअ़ल्लुक़ात क़ाइम करे, मोबाइल या नेट का ग़लत़ इस्ति'माल करे, इ़श्क़े मजाज़ी की आफ़त में गिरिफ़्तार हो जाए, फ़िल्में ड्रामे देखे, गाने बाजे सुने, नित नए फै़शन अपनाए, ह़राम व ह़लाल की परवा न करे, शराब पिये, जुवा खेले, झूट बोले, ग़ीबतें करे, रिशवतों का लेन देन करे, नाजाइज़ फै़शन अपनाए, बद अ़क़ीदा लोगों की सोह़बत में बैठे, फ़ुज़ूल कामों में पैसा बरबाद करे, अल ग़रज़ ! त़रह़ त़रह़ की बुराइयों में मुब्तला हो जाए, तो इन मुआ़मलात में उस से पूछ गछ करना तो दूर की बात है मां-बाप की पेशानी पर बल तक नहीं आता । येह नज़्ज़ारे भी देखने को मिलते हैं कि कोई इस्लाह़ करे भी, तो मां-बाप कहते हैं : "अभी तो येह बच्चा है, नादान है, आहिस्ता आहिस्ता समझ जाएगा, बच्चों पर इतनी भी सख़्ती नहीं करनी चाहिये वग़ैरा ।" इस्लामी तरबिय्यत से मह़रूम, ह़द से ज़ियादा लाड प्यार और ढील देने के सबब वोही बच्चा जब मां-बाप, ख़ानदान और मुआ़शरे की बदनामी का सबब बनता है, डांट डपट करने या पैसे न देने पर मां-बाप को आंखें दिखाता, झाड़ता या उन पर हाथ उठाता है, तो उस वक़्त उन्हें ख़ैर ख़्वाहों की नसीह़तें याद आने लगती हैं, अब मां-बाप उस की इस्लाह़ के लिये कुढ़ते, दुआ़एं करते और करवाते हैं मगर इस्लाह़ की कोई सूरत नज़र नहीं आती, उस वक़्त पानी सर से बहुत ऊंचा हो चुका होता है और सिवाए पछताने के कुछ हाथ नहीं आता, गोया वालिदैन की थोड़ी सी ला परवाई की वज्ह से एक क़ीमती मोती ज़ाएअ़ हो चुका होता है ।
औलाद की मदनी तरबिय्यत न करने और उन्हें ह़द से ज़ियादा ढील देने के सबब मां-बाप को कैसे कैसे दिन देखने पड़ते हैं । आइये ! इस बारे में एक इ़ब्रत अंगेज़ ह़िकायत सुनती हैं और इ़ब्रत के मदनी फूल चुनती हैं । चुनान्चे,
क्या बेटा भी कभी बाप को मारता है ?
तम्बीहुल ग़ाफ़िलीन में है : "समरक़न्द" के एक आ़लिमे दीन ह़ज़रते सय्यिदुना अबू ह़फ़्स رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के पास एक शख़्स आया और कहने लगा : मेरे बेटे ने मुझे मारा है । उन्हों ने ह़ैरत से पूछा : क्या बेटा भी कभी बाप को मारता