Book Name:Aulad Ki Tarbiyat Aur Walidain Ki Zimadariyan
नमाज़ अदा कर ली है या नहीं ? बीमारी की ह़ालत में भी अपने बड़े शहज़ादे से फ़रमाया : जैसे ही मेरी त़बीअ़त बह़ाल हुई, اِنْ شَآءَ اللّٰہ हम दोनों मदनी क़ाफ़िले में सफ़र करेंगे । शहज़ादे को मोबाइल ले कर देने से मन्अ़ करते हुवे ज़ेहन बनाया कि चूंकि अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने बच्चों को मोबाइल ले कर देने से मन्अ़ फ़रमाया है, इस लिये मैं आप को मोबाइल ले कर नहीं दूंगा । (मह़बूबे अ़त़्त़ार की 122 ह़िकायात, स. 13, मुलख़्ख़सन)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान कर्दा ह़िकायात में वालिदैन और औलाद दोनों के लिये नसीह़त के मदनी फूल मौजूद हैं । येह सच है कि अच्छे वालिदैन औलाद की मदनी तरबिय्यत से कभी ग़ाफ़िल नहीं होते बल्कि उन्हें नसीह़त के मदनी फूलों की ख़ुश्बू से महकाए रखते और उन की इस्लाह़ की कोशिश करते हैं । अगर वोह ख़ुद नमाज़ी, मदनी इनआ़मात और सुन्नतों के पैकर हों, तो अपने बच्चों को भी इन मदनी कामों की तरग़ीब दिलाते और उन से पूछ गछ का सिलसिला जारी रखते हैं । बहर ह़ाल अब येह फै़सला वालिदैन को करना है कि वोह तरबिय्यते औलाद का अहम काम सर अन्जाम दे कर औलाद को अपने लिये सदक़ए जारिया का सबब बनाते हैं या फिर उन्हें खुली आज़ादी दे कर अपनी आख़िरत की बरबादी का सामान करते हैं ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
इन्टरनेट और सोशल मीडिया के ग़लत़ इस्ति'माल
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! इन्टरनेट और सोशल मीडिया (Social Media) के जो अख़्लाक़ी व मुआ़शरती नुक़्सानात हैं, वोह हम से ढके छुपे नहीं । एक वक़्त था कि टीवी और सिनेमा के नुक़्सान पहुंचाने वाले असरात और भयानक नताइज मुआ़शरे (Society) के लिये परेशानी का बाइ़स थे और टेलीवीज़न को सिह़्ह़त के लिये सब से ज़ियादा नुक़्सान देह क़रार दिया गया था मगर आज मोबाइल और इन्टरनेट सब से ज़ियादा सिह़्ह़त को ख़राब और