Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

Book Name:Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

याद रखिये ! येह सब दीन से दूरी की नुह़ूसत है । ऐसे ही दौर के बारे में ग़ैब की ख़बर देते हुवे प्यारे आक़ा, मदीने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : लोगों पर एक ज़माना ऐसा आएगा कि आदमी को इस बात की कोई परवा न होगी कि उस ने (माल) कहां से ह़ासिल किया, ह़राम से या ह़लाल से । (بخاری، کتاب البیوع، باب من لم یبالی من حیث الخ، ۲/۷، حدیث:۲۰۵۹)

        ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ इस ह़दीस की शर्ह़ में फ़रमाते हैं : या'नी आख़िर ज़माने में लोग दीन से बे परवा हो जाएंगे, पेट की फ़िक्र में हर त़रह़ फंस जाएंगे, आमदनी बढ़ाने, माल जम्अ़ करने की फ़िक्र करेंगे, हर ह़राम व ह़लाल लेने पर दिलेर (या'नी बहादुर) हो जाएंगे, जैसा कि आज कल आ़म है । (मिरआतुल मनाजीह़, 4 / 229)

          एक और ह़दीसे पाक में है : लोगों पर एक ज़माना ऐसा आएगा कि उस शख़्स के इ़लावा किसी दीन वाले का दीन मह़फ़ूज़ न रहेगा जो अपने दीन को ले कर (या'नी उस की ह़िफ़ाज़त की ख़ात़िर) एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ और एक ग़ार से दूसरे ग़ार की त़रफ़ भागे, उस वक़्त मई़शत (या'नी रोज़ी रोटी वग़ैरा) का ह़ुसूल अल्लाह पाक को नाराज़ किये बिग़ैर न होगा । जब येह सूरते ह़ाल होगी, तो आदमी अपने बीवी बच्चों के हाथों बरबाद हो जाएगा, अगर बीवी बच्चे न होंगे, तो वालिदैन के हाथों उस की बरबादी होगी और अगर वालिदैन भी न हों, तो उस की बरबादी रिश्तेदारों या पड़ोसियों के हाथों होगी । सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! येह कैसे होगा ? आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : वोह उसे मई़शत (या'नी रोज़ी रोटी वग़ैरा) की कमी पर शर्म दिलाएंगे, उस वक़्त वोह अपने आप को बरबादी की जगहों में ले जाएगा । (الزهد الکبیر للبیهقی،الجزء الثانی، فصل فی ترک الدنیا الخ، ص۱۸۳، حدیث:۴۳۹)

माले ह़राम का वबाल

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हमें चाहिये कि हम अपने घर के मह़ारिम से बेजा चीज़ों का मुत़ालबा न करें, ज़रूरत से ज़ियादा कपड़ों का तक़ाज़ा न करें और कम पैसों से ज़रूरत पूरी हो रही है, तो बिला वज्ह ज़ियादा पैसे त़लब कर के उन की परेशानी में इज़ाफ़ा न करें ताकि उन का दिल कभी भी हम से न दुखे और वोह इन बातों की वज्ह से नफ़रत न करें और वोह ह़राम की कमाई से बचे रहें ।

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! ग़ौर कीजिये ! उस शख़्स की बद नसीबी का क्या आ़लम होगा जो अपने बाल बच्चों के लिये ह़राम कमाता रहे और क़ियामत के दिन उस के घर वाले ही उस की तमाम नेकियां ह़ासिल कर के नजात पा जाएं और वोह ख़ुद कंगाल रह जाए । हमारे मुआ़शरे के ह़ालात इस क़दर ख़राब हो चुके हैं कि माल की लालच में मुब्तला हो कर कारोबार में न जाने कैसे कैसे गुनाह किये जाते हैं । नक़्ली, मिलावट वाली और ऐ़ब दार चीज़ को अस्ली, मे'यारी और आ'ला कवॉलिटी की बता कर बेचा जा रहा है, ख़रीदार अगर किसी ख़राबी की निशान देही करे, तो उसे यक़ीन दिलाने के लिये झूटी क़स्में भी खाई जाती हैं । इसी त़रह़ बा'ज़ लोगों पर अमीरो कबीर बनने, महंगी महंगी गाड़ियों में घूमने, शोहरत व मन्सब, जदीद तरीन सहूलिय्यात, जाएदादों, मिलों (Mills) और फे़क्ट्रियों के मालिकाना ह़ुक़ूक़ पाने का ऐसा भूत सुवार है कि वोह दूसरों के मुंह का निवाला छीन कर अपना बैंक बेलन्स मज़बूत़ बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं, चाहे इस राह में