Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

Book Name:Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

          आइये ! इस बारे में एक इ़ब्रत आमोज़ ह़िकायत सुनती हैं और इ़ब्रत के मदनी फूल चुनती हैं । चुनान्चे,

दुआ़ क़बूल न होने का सबब

          ह़ज़रते सय्यिदुना उ़ब्बाद ख़व्वास رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ से मन्क़ूल है : एक मरतबा ह़ज़रते सय्यिदुना मूसा عَلَیْہِ السَّلَام किसी मक़ाम से गुज़रे, तो देखा कि एक शख़्स हाथ उठाए रो रो कर बड़े रिक़्क़त वाले अन्दाज़ में दुआ़ मांग रहा था । ह़ज़रते सय्यिदुना मूसा عَلَیْہِ السَّلَام उसे देखते रहे फिर अल्लाह पाक की बारगाह में अ़र्ज़ गुज़ार हुवे : ऐ मेरे रह़ीमो करीम परवर दगार ! तू अपने इस बन्दे की दुआ़ क्यूं नहीं क़बूल कर रहा ? अल्लाह पाक ने आप عَلَیْہِ السَّلَام की त़रफ़ वह़्य नाज़िल फ़रमाई : ऐ मूसा ! अगर येह शख़्स इतना रोए, इतना रोए कि इस का दम निकल जाए और अपने हाथ इतने बुलन्द कर ले कि आसमान को छू लें, तब भी मैं इस की दुआ़ क़बूल न करूंगा । ह़ज़रते सय्यिदुना मूसा عَلَیْہِ السَّلَام ने अ़र्ज़ की : मेरे मौला ! इस की क्या वज्ह है ? इरशाद हुवा : येह ह़राम खाता और ह़राम पहनता और इस के घर में ह़राम माल है । (उ़यूनुल ह़िकायात, ह़िस्सा दुवुम, स. 196)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि जो ह़राम खाता, ह़राम पहनता और अपने घर में ह़राम माल रखता है, तो वोह अपनी दुआ़ओं के फ़ाइदों से ख़ुद को मह़रूम करता और अ़ज़ाबे जहन्नम का ह़क़दार क़रार पाता है, लिहाज़ा अगर हम चाहती हैं कि हमारी दुआ़एं बारगाहे इलाही में मक़्बूल हों और अल्लाह पाक की नाराज़ी से अमन नसीब हो, तो हमें चाहिये कि सिर्फ़ ह़लाल खाना ही अपनी आ़दत बनाएं और ह़राम व नाजाइज़ चीज़ों से बचती रहें । बिलफ़र्ज़ अगर कम तनख़ाह में घर नहीं चल रहा हो, तो ग़ैर ज़रूरी अख़राजात से जान छुड़ाइये, माल की लालच में ह़राम ज़राएअ़ इख़्तियार मत कीजिये ।

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! हमें चाहिये हमेशा रिज़्के़ ह़लाल ही खाएं और ह़राम से बचें, साथ साथ येह बात भी ज़ेहन नशीन रखिये कि घर वालों की सुन्नतों के मुत़ाबिक़ मदनी तरबिय्यत करना भी घर के सरपरस्तों पर लाज़िम है मगर इस के लिये ज़रूरी है कि वोह ख़ुद भी किसी अच्छे माह़ोल से वाबस्ता हों और उन का अपना भी मदनी ज़ेहन बना हुवा हो, वरना काम्याबी की उम्मीद रखना बे फ़ाइदा है । उ़मूमन देखा जाता है कि बा'ज़ ख़वातीन अपनी औलाद के लिये बड़े दर्द मन्दाना अन्दाज़ में दुआ़ के लिये इल्तिजाएं कर रही होती हैं : दुआ़ करें मेरी औलाद नमाज़ी बन जाए, ख़ुद चाहे नमाज़ न पढ़ती हों । दुआ़ करें : मेरी औलाद क़ुरआने करीम की तिलावत करे, ख़ुद चाहे माहे रमज़ान में ही क़ुरआने करीम खोल कर देखा हो । दुआ़ करें : मेरी औलाद राहे रास्त पर आ जाए, फ़िल्में ड्रामे, बुरी दोस्तियां छोड़ दे, ख़ुद चाहे जवान बेटों, बेटियों के साथ गुनाहों भरे चेनल्ज़ देखने में कोई शर्म मह़सूस न करती हों ।

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! औलाद के नेक होने की तमन्ना वाके़ई़ बहुत अच्छी है मगर हमें अपने ज़ाती किरदार का जाइज़ा लेना होगा, अपने आ'माल अच्छे करने होंगे, इ़ल्मे दीन ह़ासिल कर के उस पर अ़मल करना होगा, ह़लाल रोज़ी में ह़राम के जितने भी ज़राएअ़ शामिल हो सकते हैं उन से अपने आप को ख़बरदार रखना होगा, हर हर काम को शरीअ़ते मुत़ह्हरा की रौशनी में