Book Name:Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain
1. اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने उन से इरशाद फ़रमाया : یَاسَعْد!اَطِبْ مَطْعَمَکَ تَکُنْ مُسْتَجَابَ الدَّعْوَۃِ अपने खाने को पाकीज़ा बनाओ, तुम्हारी दुआ़एं क़बूल हुवा करेंगी ।
(معجم اوسط،من اسمہ محمد،۵/۳۴، حدیث:۶۴۹۵)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि अल्लाह पाक ने ह़लाल खाने में कैसी कैसी बरकतें रखी हैं ! ह़लाल खाने की बरकत से बन्दे का दिल नूर से मा'मूर हो जाता है, ह़लाल खाने की बरकत से ज़बान से ह़िक्मत के चश्मे जारी हो जाते हैं । येह भी मा'लूम हुवा ! अपने बाल बच्चों, बूढ़े वालिदैन की ख़ात़िर रिज़्क़ की तलाश में निकलने वाला राहे ख़ुदा में होता है । ज़रा ग़ौर कीजिये ! ह़लाल खाने और कमाने वालों को किस क़दर फ़ज़ाइलो बरकात ह़ासिल होते हैं मगर अफ़्सोस ! बा'ज़ लोग नफ़्सो शैत़ान के हाथों खिलौना बन कर रोज़ी के ह़लाल व पाकीज़ा और आसान ज़राएअ़ मुयस्सर होने के बा वुजूद ख़्वाह म-ख़्वाह ह़राम ज़राएअ़ इख़्तियार कर के, ह़राम खा कर या खिला कर अपने लिये जहन्नम में जाने का सामान करते हैं ।
ह़लाल रोज़ी कमाने, ख़ाने, ह़राम और शको शुबा वाली चीज़ों से बचने के मुआ़मले में अल्लाह पाक के नेक बन्दों का किरदार ता'रीफ़ के क़ाबिल होता है कि येह ह़ज़रात रिज़्क़े ह़लाल की तलाश के लिये बसा अवक़ात दूर दराज़ का सफ़र भी करते थे नीज़ पराई चीज़ को माले ग़नीमत समझ कर माले मुफ़्त दिले बे रह़म की त़रह़ हड़प करने वाले न थे बल्कि बहुत ही मोह़्तात़ त़बीअ़त वाले थे । आइये ! बत़ौरे तरग़ीब एक ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ सुन कर उस से मदनी फूल चुनिये । चुनान्चे,
रिज़्क़े ह़लाल की तलाश में सफ़र
दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "उ़यूनुल ह़िकायात" (ह़िस्सा अव्वल), सफ़ह़ा नम्बर 223 और 224 पर लिखा है, ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम बिन अदहम رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं एक मरतबा रिज़्क़े ह़लाल कमाने के लिये "त़रसूस" नामी शहर की त़रफ़ रवाना हुवा, जब मैं वहां पहुंचा, तो एक शख़्स मेरे पास आया और मुझ से कहने लगा : मुझे अपने अंगूरों के बाग़ की देख भाल करने के लिये एक बाग़ की ह़िफ़ाज़त करने वाले की ज़रूरत है, क्या तुम मज़दूरी पर मेरे बाग़ की निगरानी करने के लिये तय्यार हो ? मैं ने कहा : जी हां ! चुनान्चे, मैं उस शख़्स के साथ चला गया और ख़ूब मेह़्नत व लगन से उस के बाग़ में काम करता रहा । एक दिन बाग़ का मालिक अपने कुछ दोस्तों के साथ बाग़ में आया और मुझे बुला कर कहा : हमारे लिये बेहतरीन क़िस्म के मीठे अंगूर तोड़ कर लाओ । येह सुन कर मैं ने काफ़ी मिक़्दार में अंगूर ला कर उस के सामने रख दिये । मालिक ने जब अंगूर का दाना खाया, तो वोह खट्टा निकला और उस ने मुझ से कहा : ऐ बाग़ की देख भाल करने वाले ! तुझ पर अफ़्सोस है ! तू इतने दिनों से इस बाग़ में काम कर रहा है और अभी तक तुझे खट्टे और मीठे अंगूरों की पहचान न हो सकी, ह़ालांकि तू यहां से दिन, रात ख़ूब अंगूर खाता होगा । मैं ने बाग़ के मालिक से कहा : अल्लाह पाक की क़सम ! मैं ने आज तक तुम्हारे इस बाग़ से अंगूर का एक दाना भी नहीं खाया क्यूंकि मैं तो सिर्फ़ बाग़ की देख भाल करने के लिये आया हूं, जभी तो मुझे खट्टे और मीठे अंगूरों की पहचान नहीं हो सकी । येह सुन कर बाग़ का मालिक अपने दोस्तों से कहने लगा : क्या इस से भी ज़ियादा कोई अ़जीब बात हो