Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

Book Name:Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

तुम अपनी परहेज़गारी में सच्चे हो, तो न ही किसी की ह़राम पर रहनुमाई करो कि अगर वोह उसे खा ले, तो उस का ह़िसाब तुम से लिया जाए और न ही ह़राम के ह़ुसूल में किसी की मदद करो क्यूंकि मददगार भी अ़मल में शरीक ही होता है । याद रखो ! ह़लाल खाने ही से आ'माल क़बूल होते हैं, मोह़्ताजी को छुपाने और तन्हाई में रो रो कर आहें भरने को आ'माल की क़बूलिय्यत और रिज़्क़े ह़लाल कमाने के सिलसिले में निहायत अहम मक़ाम ह़ासिल है । (आंसूओं का दरया, स. 284)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! उ़मूमन बा'ज़ इस्लामी बहनें येह शिकवा करती हैं कि वोह लम्बे अ़र्से से फ़ुलां परेशानी या बीमारी में मुब्तला हैं, इस से नजात के लिये गिड़गिड़ा कर दुआ़एं करती हैं, अवरादो वज़ाइफ़ भी पढ़ती हैं, नमाज़, रोज़े की पाबन्दी भी करती हैं, सदक़ा व ख़ैरात भी करती हैं, भूकों को खाना भी खिलाती हैं, सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त में भी शिर्कत करती हैं, त़रह़ त़रह़ की कोशिशें कीं मगर परेशानियां ख़त्म होने के बजाए मज़ीद बढ़ती ही जा रही हैं । ऐसी इस्लामी बहनों को चाहिये कि वोह दुआ़ क़बूल न होने पर शिकवा शिकायत करने के बजाए इस के अस्बाब पर ग़ौर करें, हो सकता है दुआ़ की क़बूलिय्यत में रुकावट ख़ुद उन का अपना किरदार बना हुवा हो । मसलन बसा अवक़ात दुआ़ की क़बूलिय्यत में ह़राम ख़ोरी आड़े आ जाती है, जिस के सबब दुआ़एं क़बूल नहीं होतीं । जैसा कि :

          हमारे प्यारे प्यारे आक़ा, हमें बख़्शवाने वाले दाता صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : अल्लाह पाक है और पाक ही को दोस्त रखता है और अल्लाह पाक ने मोमिनीन को भी उसी का ह़ुक्म दिया, जिस का रसूलों को ह़ुक्म दिया । उस ने रसूलों से फ़रमाया :

یٰۤاَیُّهَا الرُّسُلُ كُلُوْا مِنَ الطَّیِّبٰتِ وَ اعْمَلُوْا صَالِحًاؕ-اِنِّیْ بِمَا تَعْمَلُوْنَ عَلِیْمٌؕ(۵۱)(پ۱۸،المؤمنون:۵۱)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ रसूलो ! पाकीज़ा चीज़ें खाओ और अच्छा काम करो ।

          और (मोमिनीन से फ़रमाया) :

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا كُلُوْا مِنْ طَیِّبٰتِ مَا رَزَقْنٰكُمْ(پ۲،البقرۃ:۱۷۲)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ ईमान वालो ! हमारी दी हुई सुथरी चीज़ें खाओ ।

फिर (ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने) लम्बा सफ़र करने वाले एक शख़्स का ज़िक्र फ़रमाया : जिस के बाल बिखरे हुवे और बदन मिट्टी में भरा हुवा है, वोह अपने हाथ आसमान की त़रफ़ बुलन्द कर के या रब ! या रब ! पुकार रहा है, ह़ालांकि उस का खाना ह़राम, पीना ह़राम, लिबास ह़राम और ग़िज़ा ह़राम है, तो उस की दुआ़ कैसे क़बूल हो सकती है ।

(مسلم، کتاب الزکاۃ، باب قبول الصدقۃ…الخ، ص۵۰۶،حدیث:۶۵ (۱۰۱۵))

          'ला ह़ज़रत के वालिदे गिरामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती नक़ी अ़ली ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : खाने, पीने, लिबास व कस्ब (या'नी पेशे) में ह़राम से एह़तियात़ करे कि ह़राम ख़्वार व ह़राम कार (या'नी ह़राम खाने वाले और ह़राम काम करने वाले) की दुआ़ अक्सर रद्द होती है । (फ़ज़ाइले दुआ़, स. 60)