Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

Book Name:Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain

बारे में 4 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनिये और ह़राम से बचने की निय्यत भी कर लीजिये । चुनान्चे,

1.     इरशाद फ़रमाया : उस ज़ाते पाक की क़सम जिस के क़ब्ज़ए क़ुदरत में मुह़म्मद (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) की जान है ! बेशक बन्दा ह़राम का लुक़्मा अपने पेट में डालता है, तो उस के 40 दिन के अ़मल क़बूल नहीं होते और जिस बन्दे का गोश्त ह़राम और सूद से पला बढ़ा हो, उस के लिये आग ज़ियादा बेहतर है । (معجم اوسط ،من اسمہ محمد،۵ /۳۴، حدیث: ۶۴۹۵)

2.     इरशाद फ़रमाया : जब मुर्दे को तख़्त पर रख कर उठाया जाता है, तो उस की रूह़ फड़फड़ा कर तख़्त पर बैठ कर आवाज़ देती है कि ऐ मेरे बाल बच्चों ! दुन्या तुम्हारे साथ इस त़रह़ न खेले जैसा कि उस ने मेरे साथ खेला, मैं ने ह़लाल और ग़ैरे ह़लाल माल जम्अ़ किया और फिर वोह माल दूसरों के लिये छोड़ आया, उस का फ़ाइदा उन के लिये है और उस का नुक़्सान मेरे लिये, पस जो कुछ मुझ पर गुज़री है, उस से इ़ब्रत ह़ासिल करो ।

 (التذکرۃ للقُرطبی،باب ماجاء ان ملک الموت …الخ،ص۶۹)

3.     इरशाद फ़रमाया : जो शख़्स दस दराहिम में एक कपड़ा ख़रीदे और उन दराहिम में ह़राम का एक दिरहम भी शामिल हो, तो अल्लाह पाक उस वक़्त तक उस की कोई नमाज़ भी क़बूल नहीं फ़रमाएगा जब तक उस कपड़े में से कुछ भी उस के इस्ति'माल में रहे । (کنزالعمال،کتاب البیوع،الجزء،۴،۲/۸،حدیث: ۹۲۶۰)

4.     इरशाद फ़रमाया : अल्लाह पाक का एक फ़िरिश्ता हर दिन और रात में बैतुल मक़्दिस की छत पर ए'लान करता है : जिस ने ह़राम खाया, तो अल्लाह पाक न तो उस का कोई फ़र्ज़ क़बूल फ़रमाएगा, न ही कोई नफ़्ल । (اتحاف السادۃ ،کتاب الحلال والحرام ،الباب الاول فی فضیلۃ الحال...الخ ،۶/ ۴۵۲)

          आइये ! ह़राम रोज़ी की तबाहकारियों से मुतअ़ल्लिक़ ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुर्रह़मान बिन अ़ली जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ का इरशाद सुनते हैं । चुनान्चे,

सय्यिदुना इमाम इबने जौज़ी की नसीह़त

          ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुर्रह़मान बिन अ़ली जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते  हैं : ह़राम ग़िज़ा एक ऐसी आग है जो फ़िक्र की चरबी पिघला देती है, ज़िक्र की मिठास की लज़्ज़त ख़त्म कर देती है, सच्ची निय्यतों के लिबास जला देती है और ह़राम ही से दिल के देखने की क़ुव्वत का अन्धा पन पैदा होता है, लिहाज़ा माले ह़लाल जम्अ़ करो और उसे दरमियानी अन्दाज़ से ख़र्च करो, ख़ुद भी ह़राम से बचो और अपने घर वालों को भी इस से बचाओ । ह़राम ख़ोरों की सोह़बत में न बैठो, उन का खाना खाने से बचते रहो, जिस का ज़रीअ़ए मआ़श ह़राम हो, उस की सोह़बत इख़्तियार न करो, अगर तुम अपनी परहेज़गारी में सच्चे हो, तो न ही किसी की ह़राम पर रहनुमाई करो कि अगर वोह उसे खा ले, तो उस का ह़िसाब तुम से लिया जाए और न ही ह़राम के ह़ुसूल में किसी की मदद करो क्यूंकि मददगार भी अ़मल में शरीक ही होता है । याद रखो ! ह़लाल खाने ही से आ'माल क़बूल होते हैं, मोह़्ताजी को छुपाने और तन्हाई में रो रो कर आहें भरने को आ'माल की क़बूलिय्यत और रिज़्क़े ह़लाल कमाने के सिलसिले में निहायत अहम मक़ाम ह़ासिल है । (आंसूओं का दरया, स. 284)

 صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!     صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد