Book Name:Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! क़ुरआने करीम और अह़ादीसे मुबारका में कई मक़ामात पर ह़लाल खाने और ह़राम से बचने का ह़ुक्म आया है । आइये ! आज के बयान में हम ह़लाल खाने के फ़ज़ाइल और ह़राम खाने के नुक़्सानात के मुतअ़ल्लिक़ सुनने की सआ़दत ह़ासिल करते हैं ।
करोड़ों ह़नफ़िय्यों के अ़ज़ीम पेशवा, ह़ज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अबू ह़नीफ़ा رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने ह़लाल रिज़्क़ ह़ासिल करने की ग़रज़ से तिजारत का पेशा अपनाया था । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ कपड़े के बहुत बड़े ताजिर थे मगर इस के बा वुजूद आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की तिजारत एह़सान, ख़ैर ख़्वाही और इस्लाम के पाकीज़ा उसूलों पर मुश्तमिल थी । चुनान्चे, ह़ज़रते सय्यिदुना ह़फ़्स बिन अ़ब्दुर्रह़मान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अबू ह़नीफ़ा رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ मेरे साथ तिजारत करते थे और मुझे माले तिजारत भेजते हुवे फ़रमाया करते : ऐ ह़फ़्स ! फ़ुलां कपड़े में कुछ ऐ़ब है, जब तुम उसे फ़रोख़्त करो, तो ऐ़ब बयान कर देना । ह़ज़रते सय्यिदुना ह़फ़्स رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने एक मरतबा माले तिजारत फ़रोख़्त किया और बेचते हुवे ऐ़ब बताना भूल गए । जब ह़ज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ को इ़ल्म हुवा, तो आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने तमाम कपड़ों की क़ीमत सदक़ा कर दी । (تاریخ بغداد،باب مناقب ابی حنیفة ، ۱۳/۳۵۶)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि हमारे इमामे आ'ज़म अबू ह़नीफ़ा رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ह़लाल रोज़ी खाने और लुक़्मए ह़राम व शुबा वाली चीज़ों से बचने में किस क़दर एह़तियात़ फ़रमाते थे, यक़ीनन आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ जानते थे कि ह़राम व शुबा वाली चीज़ों में ज़र्रा बराबर भी बरकत नहीं होती । बरकत तो सारी की सारी ह़लाल और पाकीज़ा चीज़ों में रखी गई है, शायद इसी वज्ह से आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने फ़रोख़्त शुदा कपड़ों की तमाम रक़म अपने पास रखना गवारा नहीं की और राहे ख़ुदा में सदक़ा कर दी ।
बयान कर्दा ह़िकायत में उन लोगों के लिये इ़ब्रत के मदनी फूल मौजूद हैं जिन की ज़िन्दगी का मक़्सद सिर्फ़ व सिर्फ़ माल जम्अ़ करना और बैंक बेलन्स बढ़ाना है । बा'ज़ अवक़ात ऐसों में माल समेटने की लालच इस क़दर ग़ालिब होती है कि वोह लेन देन के वक़्त ह़राम की आफ़त में मुब्तला हो कर न सिर्फ़ ख़ुद बल्कि अपने घर वालों को भी हलाकत में डाल देते हैं ।
याद रखिये ! दुन्या में जिस के पास जितना ज़ियादा माल होगा, आख़िरत में उसे उतना ही ज़ियादा ह़िसाब भी देना होगा, लिहाज़ा हमें ह़राम चीज़ों से बचते हुवे हमेशा ह़लाल व पाकीज़ा रोज़ी ही की कोशिश करनी चाहिये और दूसरों को भी इस की तरग़ीब दिलानी चाहिये ताकि हमें भी ह़लाल खाने की फ़ज़ीलत ह़ासिल हो ।
ह़लाल खाने की फ़ज़ीलत बयान करते हुवे ह़ुज्जतुल इस्लाम, ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : बा'ज़ बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن फ़रमाते हैं : मुसलमान जब ह़लाल खाने का पहला लुक़्मा खाता है, तो उस के पहले के गुनाह मुआ़फ़ कर दिये जाते हैं और जो शख़्स रिज़्के़ ह़लाल की त़लब में ज़िल्लत की जगह खड़ा होता है, तो उस के गुनाह दरख़्त के पत्तों की त़रह़ झड़ते हैं । (इह़याउल उ़लूम, 2 / 116)