Book Name:Halal Kay Fazail Aur Haram Ki Waedain
ह़ज़रते सय्यिदुना फ़क़ीह अबुल्लैस समरक़न्दी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ नक़्ल करते हैं, मरवी है कि मर्द से तअ़ल्लुक़ रखने वालों में पहले उस की ज़ौजा और उस की औलाद है, येह सब (या'नी बीवी, बच्चे क़ियामत में) अल्लाह पाक की बारगाह में अ़र्ज़ करेंगे : ऐ हमारे रब्बे करीम ! इस शख़्स से हमारा ह़क़ दिला क्यूंकि इस ने कभी हमें दीनी ता'लीम नहीं दी और येह हमें ह़राम खिलाता था जिस का हमें इ़ल्म न था फिर उस शख़्स को ह़राम कमाने पर इस क़दर मारा जाएगा कि उस का गोश्त झड़ जाएगा फिर उसे मीज़ान (या'नी तराज़ू) के पास लाया जाएगा, फ़िरिश्ते पहाड़ के बराबर उस की नेकियां लाएंगे, तो उस के बाल बच्चों में से एक शख़्स आगे बढ़ कर कहेगा : मेरी नेकियां कम हैं, तो वोह उस की नेकियों में से ले लेगा, फिर दूसरा आ कर कहेगा : तू ने मुझे सूद खिलाया था और उस की नेकियों में से ले लेगा । इस त़रह़ उस के घर वाले उस की सब नेकियां ले जाएंगे और वोह अपने बाल बच्चों की त़रफ़ मायूसी से देख कर कहेगा : अब मेरी गरदन पर वोह गुनाह व ज़ुल्म रह गए हैं, जो मैं ने तुम्हारे लिये किये थे । फ़िरिश्ते कहेंगे : येह वोह बद नसीब शख़्स है जिस की नेकियां इस के घर वाले ले गए और येह उन की वज्ह से जहन्नम में चला गया । (الروض الفائق،الباب الثامن فی عقوبة قاتل۔۔۔الخ، ص۴۰۱)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ग़ौर कीजिये ! उस शख़्स की बद नसीबी का क्या आ़लम होगा जो अपने बाल बच्चों के लिये ह़राम कमाता रहे और क़ियामत के दिन उस के घर वाले ही उस की तमाम नेकियां ह़ासिल कर के नजात पा जाएं और वोह ख़ुद कंगाल रह जाए । हमारे मुआ़शरे के ह़ालात इस क़दर ख़राब हो चुके हैं कि माल की लालच में मुब्तला हो कर कारोबार में न जाने कैसे कैसे गुनाह किये जाते हैं । नक़्ली, मिलावट वाली और ऐ़ब दार चीज़ को अस्ली, मे'यारी और आ'ला कवॉलिटी की बता कर बेचा जा रहा है, ख़रीदार अगर किसी ख़राबी की निशान देही करे, तो उसे यक़ीन दिलाने के लिये झूटी क़स्में भी खाई जाती हैं । इसी त़रह़ बा'ज़ लोगों पर अमीरो कबीर बनने, महंगी महंगी गाड़ियों में घूमने, शोहरत व मन्सब, जदीद तरीन सहूलिय्यात, जाएदादों, मिलों (Mills) और फे़क्ट्रियों के मालिकाना ह़ुक़ूक़ पाने का ऐसा भूत सुवार है कि वोह दूसरों के मुंह का निवाला छीन कर अपना बैंक बेलन्स मज़बूत़ बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं, चाहे इस राह में किसी का घर उजाड़ना पड़े, किसी की जान लेनी पड़े, किसी का ह़क़ दबाना पड़े वोह परवा नहीं करते ।
ज़रा ग़ौर कीजिये ! हम अपने ज़ाती मुआ़मलात में तो ह़द से ज़ियादा मोह़्तात़ होते हैं कि कोई हमें धोका न दे जाए, मसलन गाड़ी में पेट्रोल भरवाना हो, बड़े नोट वुसूल करने हों, दुकान, मकान, ज़मीन और दीगर अश्या वग़ैरा ख़रीदनी हों, किसी चीज़ के काग़ज़ात बनवाने हों, तो ख़ूब छान बीन करते और करवाते हैं और जब तक दिल मुत़मइन नहीं हो जाता कोई क़दम नहीं उठाते मगर अफ़्सोस ! सद करोड़ अफ़्सोस ! जब बात आती है ह़लाल व पाकीज़ा रोज़ी कमाने, खाने और ह़राम व नाजाइज़ चीज़ों से बचने की, तो इस क़दर बे एह़तियात़ियां की जाती हैं कि दिल ख़ून के आंसूं भी रोए तो कम है । ह़राम खाना अपने साथ क्या क्या तबाहकारियां लाता है । आइये ! इस