Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

आ़लम ने रंग बदला सुब्ह़े शबे विलादत

(ज़ौके़ ना', स. 67)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

ता'ज़ियत करने के मदनी फूल

       मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! आइये ! शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "नेक बनने का नुस्ख़ा" से ता'ज़ियत करने के मदनी फूल सुनती हैं । पहले 2 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुलाह़ज़ा कीजिये :

  1. जो किसी मुसीबत ज़दा से ता'ज़ियत करेगा, उस के लिये उस मुसीबत ज़दा जैसा सवाब है । ( ترمذی، کتاب الجنائز ،باب ماجاء فی اجر من عزی مصابا،۲/۳۳۸ ،حدیث: ۱۰۷۵)
  2. जो बन्दए मोमिन अपने किसी मुसीबत ज़दा भाई की ता'ज़ियत करेगा, अल्लाह पाक क़ियामत के दिन उसे करामत का जोड़ा पहनाएगा ।

( ابن ماجہ، کتاب الجنائز ، باب ماجاء فی ثواب من عزی مصابا،۲/۲۶۸ ، حدیث: ۱۶۰۱)

٭ ता'ज़ियत का मा'ना है : मुसीबत ज़दा आदमी को सब्र की तल्क़ीन करना, ता'ज़ियत मस्नून (या'नी सुन्नत) है । (बहारे शरीअ़त, 1 / 852) ٭ दफ़्न से पहले भी ता'ज़ियत जाइज़ है मगर अफ़्ज़ल येह है कि दफ़्न के बा'द हो, येह उस वक़्त है कि औलियाए मय्यित (या'नी मय्यित के अहले ख़ाना) जज़अ़ व फ़ज़अ़ (या'नी रोना, पीटना) न करते हों, वरना उन की तसल्ली के लिये दफ़्न से पहले ही करे । ( الجوہرۃ النيرۃ، کتاب الصلاۃ، باب الجنائز، ص۱۴۱) ٭ ता'ज़ियत का वक़्त मौत से तीन दिन तक है, इस के बा'द मकरूह है कि ग़म ताज़ा होगा मगर जब ता'ज़ियत करने वाला या जिस की ता'ज़ियत की जाए, वहां मौजूद न हो या मौजूद है मगर उसे इ़ल्म नहीं, तो बा'द में ह़रज नहीं । (جوہرۃ نيرۃ، کتاب الصلاۃ، باب الجنائز، ص۱۴۱) ٭ ता'ज़ियत में येह कहे : अल्लाह पाक आप को सब्रे जमील अ़त़ा फ़रमाए और इस मुसीबत पर (सब्र करने के बदले) अज्रे अ़ज़ीम अ़त़ा फ़रमाए और अल्लाह पाक मर्ह़ूम की मग़फ़िरत फ़रमाए । ٭ सोग के अय्याम गुज़र जाने के बा वुजूद ई़द आने पर मय्यित का सोग (या'नी ग़म करना) या सोग के सबब उ़म्दा लिबास न पहनना नाजाइज़ व गुनाह है । अलबत्ता वैसे ही कोई उ़म्दा लिबास न पहने, तो गुनाह नहीं । ٭ नौह़ा या'नी मय्यित के औसाफ़ मुबालग़े के साथ (या'नी बढ़ा चढ़ा कर) बयान कर के आवाज़ से रोना जिस को "बैन" कहते हैं, ह़राम है ।  (बहारे शरीअ़त, 1 / 854, मुल्तक़त़न) ٭ अत़िब्बा (या'नी त़बीब ह़ज़रात) कहते हैं कि (जो अपने अ़ज़ीज़ की मौत पर सख़्त सदमे से दो चार हो उस के) मय्यित पर बिल्कुल न रोने से सख़्त बीमारी पैदा हो जाती है, आंसू बहने से दिल की गर्मी निकल जाती है, इस लिये इस (या'नी बिग़ैर नौह़ा) रोने से हरगिज़ मन्अ़ न किया जाए । (मिरआतुल मनाजीह़, 2 / 501)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد