Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten
عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ) पैदा हुवे । येह फ़ज़्लो रह़मत या इन की ख़ुशी मनाना, तुम्हारे दुन्यवी जम्अ़ किये हुवे मालो मताअ़, रुपया, मकान, जाएदाद, जानवर, खेती बाड़ी बल्कि औलाद वगै़रा सब से बेहतर है कि इस ख़ुशी का नफ़्अ़ (या'नी फ़ाइदा) शख़्सी नहीं बल्कि क़ौमी है, वक़्ती नहीं बल्कि दाइमी (या'नी हमेशा रहने वाला) है, सिर्फ़ दुन्या में नहीं बल्कि दीनो दुन्या दोनों में है, जिस्मानी नहीं बल्कि दिली और रूह़ानी है, बरबाद नहीं बल्कि इस पर सवाब है । (तफ़्सीरे नई़मी, 11 / 369)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! अहले सुन्नत के मज़हब में मजलिसे मीलादे पाक अफ़्ज़ल तरीन मन्दूबात (या'नी मुस्तह़ब्बात) और आ'ला तरीन नेक कामों में से है । (अल ह़क़्कुल मुबीन, स. 100)
सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आ'ज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मीलाद शरीफ़ या'नी हु़ज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की विलादते अक़्दस का बयान जाइज़ है । इसी के ज़िमन में इस मजलिसे पाक में हु़ज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के फ़ज़ाइल व मो'जिज़ात व सियर (या'नी ख़स्लतें) व ह़ालात व ह़यात व रज़ाअ़त व बिअ़्सत (या'नी ज़िन्दगी, बचपन और दुन्या में तशरीफ़ आवरी) के वाक़िआ़त भी बयान होते हैं, इन चीज़ों का ज़िक्र अह़ादीस में भी है और क़ुरआने मजीद में भी । अगर मुसलमान अपनी मह़फ़िल में बयान करें बल्कि ख़ास इन बातों के बयान करने के लिये मह़फ़िल मुन्अ़क़िद करें, तो इस के नाजाइज़ होने की कोई वज्ह नहीं । इस मजलिस के लिये लोगों को बुलाना और शरीक करना ख़ैर (या'नी भलाई) की त़रफ़ बुलाना है, जिस त़रह़ वा'ज़ (या'नी मज़हबी तक़रीर) और जल्सों के ए'लान किये जाते हैं, इश्तिहारात छपवा कर तक़्सीम किये जाते हैं, अख़्बारात में इस के मुतअ़ल्लिक़ मज़ामीन शाएअ़ किये जाते हैं और इन की वज्ह से वोह वा'ज़ (या'नी मज़हबी तक़रीर) और जल्से नाजाइज़ नहीं हो जाते, इसी त़रह़ ज़िक्रे पाक के लिये बुलावा देने से इस मजलिस को नाजाइज़ व बिद्अ़त नहीं कहा जा सकता । (बहारे शरीअ़त, जि. 3, स. 644-645)
ई़दे मीलादुन्नबी और दा'वते इस्लामी
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! मुसलमानों के लिये सुल्त़ाने मदीनए मुनव्वरा, शहनशाहे मक्कए मुकर्रमा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के यौमे विलादत से बढ़ कर और कौन सा दिन "यौमे इनआ़म" हो सकता है ? क्यूंकि काइनात की तमाम रौनके़ं और तमाम ने'मतें इन्ही के ज़रीए़ तो मिली हैं और येह दिन तो ई़दों से भी बढ़ कर है कि दोनों ई़दें भी इसी के सदके़ में नसीब हुईं हैं । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के तह़्त मुल्के अमीरे अहले सुन्नत समेत कई मुमालिक में बे शुमार