Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten

"जन्नातुन्नई़म" में दाख़िल फ़रमाएगा । मुसलमान हमेशा से मह़फ़िले मीलाद मुन्अ़क़िद करते आए हैं और विलादत की ख़ुशी में दा'वतें देते, खाने पकवाते और ख़ूब सदक़ा व ख़ैरात देते आए हैं, ख़ूब ख़ुशी का इज़्हार करते और दिल खोल कर ख़र्च करते हैं, आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की विलादते बा सआ़दत के ज़िक्र का एहतिमाम करते हैं, अपने मकानों को सजाते हैं और इन तमाम अच्छे कामों की बरकत से उन लोगों पर अल्लाह करीम की रह़मतों का नुज़ूल होता है । (सुब्हे़ बहारां, स. 11, مَا ثَبَتَ مِنَ السُّنّة ص۷۴ ملخصاً)

       मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का मीलाद मनाने वालों से अल्लाह करीम किस क़दर ख़ुश होता है और उन्हें कैसे कैसे अ़ज़ीमुश्शान इनआ़मो इकराम से नवाज़ता है । लिहाज़ा जश्ने विलादत की ख़ुशी में घरों में सब्ज़ सब्ज़ परचम लहराइये, ख़ूब चराग़ां कीजिये या कम अज़ कम बारह बल्ब तो ज़रूर रौशन कीजिये और सुब्ह़े सादिक़ के वक़्त सब्ज़ सब्ज़ परचम उठाए दुरूदो सलाम पढ़ते हुवे अश्कबार आंखों के साथ सुब्हे़ बहारां का इस्तिक़्बाल कीजिये ।

          12 रबीउ़ल अव्वल के दिन हो सके तो रोज़ा भी रख लीजिये कि हमारे प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ हर पीर शरीफ़ को रोज़ा रख कर अपना यौमे विलादत मनाया करते थे । जैसा कि ह़ज़रते सय्यिदुना अबू क़तादा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ फ़रमाते हैं : बारगाहे रिसालत में पीर के रोज़े के बारे में दरयाफ़्त किया गया, तो इरशाद फ़रमाया : इसी दिन मेरी विलादत हुई और इसी रोज़ मुझ पर वह़्य नाज़िल हुई । (مُسلِم ص۵۹۱ حدیث۱۱۶۲)

       याद रहे ! नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की विलादत पर ख़ुशी मनाने का हु़क्म क़ुरआने करीम से साबित है । चुनान्चे, पारह 11, सूरए यूनुस की आयत नम्बर 58 में इरशाद होता है :

قُلْ بِفَضْلِ اللّٰهِ وَ بِرَحْمَتِهٖ فَبِذٰلِكَ فَلْیَفْرَحُوْاؕ-هُوَ خَیْرٌ مِّمَّا یَجْمَعُوْنَ(۵۸)(پارہ ۱۱،یونس۵۸)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तुम फ़रमाओ, अल्लाह के फ़ज़्ल और उस की रह़मत पर ही ख़ुशी मनानी चाहिये, येह उस से बेहतर है जो वोह जम्अ़ करते हैं ।

       ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इस आयते मुबारका के तह़्त इरशाद फ़रमाते हैं : ऐ मह़बूब ! लोगों को येह ख़ुश ख़बरी दे कर उन्हें येह हु़क्म भी दो कि अल्लाह (करीम) के फ़ज़्ल और उस की रह़मत मिलने पर ख़ूब ख़ुशियां मनाओ, उ़मूमी ख़ुशी तो हर वक़्त मनाओ, ख़ुसूसी ख़ुशी उन तारीख़ों में जिन में येह ने'मत आई या'नी रमज़ान, ख़ुसूसन शबे क़द्र और रबीउ़ल अव्वल, ख़ुसूसन बारहवीं तारीख़ में कि रमज़ान में अल्लाह (करीम) का फ़ज़्ल "क़ुरआन" आया और रबीउ़ल अव्वल में रहमतुल्लिल आ़लमीन, या'नी "मुह़म्मदे मुस्त़फ़ा" (صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی