Book Name:Tazeem-e-Mustafa Ma Jashne Milad Ki Barakaten
व दुन्यवी रह़मतें मिलती हैं । जैसा कि "तफ़्सीरे रूहु़ल बयान" में है : मह़फ़िले मीलाद शरीफ़ की बरकत साल भर तक घर में रहती है । (روح البیان ،۹ /۵۷) इसी त़रह़ ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम क़स्त़लानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : विलादते बा सआ़दत के अय्याम में मह़फ़िले मीलाद करने की ख़ुसूसिय्यत में से येह तजरिबा शुदा बात है कि उस साल अमनो अमान रहता है । अल्लाह करीम उस शख़्स पर रह़मत नाज़िल फ़रमाए जिस ने माहे विलादत की रातों को ई़द बना लिया । (مواہِبُ اللدُنیَّہ ج۱ ص۱۴۸)
जश्ने मीलाद मनाने वाले को दुन्यावी बरकतों के साथ साथ जन्नत की ख़ुश ख़बरी भी है । मश्हूर मुह़द्दिस, ह़ज़रते शाह अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिसे देहलवी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की विलादत की रात ख़ुशी मनाने वालों की जज़ा येह है कि अल्लाह करीम उन्हें अपने फ़ज़्लो करम से "जन्नातुन्नई़म" में दाख़िल फ़रमाएगा । मुसलमान हमेशा से मह़फ़िले मीलाद मुन्अ़क़िद करते आए हैं और विलादत की ख़ुशी में दा'वतें देते, खाने पकवाते और ख़ूब सदक़ा व ख़ैरात देते आए हैं, ख़ूब ख़ुशी का इज़्हार करते और दिल खोल कर ख़र्च करते हैं, आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की विलादते बा सआ़दत के ज़िक्र का एहतिमाम करते हैं, अपने मकानों को सजाते हैं और इन तमाम अच्छे कामों की बरकत से उन लोगों पर अल्लाह करीम की रह़मतों का नुज़ूल होता है । (सुब्हे़ बहारां, स. 11, مَا ثَبَتَ مِنَ السُّنّة ص۷۴ ملخصاً)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का मीलाद मनाने वालों से अल्लाह करीम किस क़दर ख़ुश होता है और उन्हें कैसे कैसे अ़ज़ीमुश्शान इनआ़मो इकराम से नवाज़ता है । लिहाज़ा जश्ने विलादत की ख़ुशी में मस्जिदों, घरों, दुकानों, सुवारियों और अपने मह़ल्ले में भी सब्ज़ सब्ज़ परचम लहराइये, ख़ूब चराग़ां कीजिये या कम अज़ कम बारह बल्ब तो ज़रूर रौशन कीजिये । रबीउ़ल अव्वल की बारहवीं रात हु़सूले सवाब की निय्यत से इजतिमाए़ ज़िक्रो ना'त में शिर्कत कीजिये और सुब्ह़े सादिक़ के वक़्त सब्ज़ सब्ज़ परचम उठाए दुरूदो सलाम पढ़ते हुवे अश्कबार आंखों के साथ सुब्हे़ बहारां का इस्तिक़्बाल कीजिये ।
12 रबीउ़ल अव्वल के दिन हो सके तो रोज़ा भी रख लीजिये कि हमारे प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ हर पीर शरीफ़ को रोज़ा रख कर अपना यौमे विलादत मनाया करते थे । जैसा कि ह़ज़रते सय्यिदुना अबू क़तादा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ फ़रमाते हैं : बारगाहे रिसालत में पीर के रोज़े के बारे में दरयाफ़्त किया गया, तो इरशाद फ़रमाया : इसी दिन मेरी विलादत हुई और इसी रोज़ मुझ पर वह़्य नाज़िल हुई । (مُسلِم ص۵۹۱ حدیث۱۱۶۲)