Aala Hazrat Ki Ibadat o Riazat

Book Name:Aala Hazrat Ki Ibadat o Riazat

अख़्बारात से हमेशा दूर रहें जो ईमान के लिये ज़हरे क़ातिल, ह़या सोज़ और अख़्लाक़ बाख़्ता हों । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 29) ٭ अपने अकाबिर के ह़ालात जानने और उन के अफ़आले ह़सना को अपनाने के लिये उन के अह़वाल व कवाइफ़ पर मुश्तमिल कुतुब का मुत़ालआ भी ज़रूरी है । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 33) ٭ इमाम ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब तुम कोई इ़ल्म ह़ासिल करने लगो या मुत़ालआ करना चाहो, तो बेहतर है कि तुम्हारा इ़ल्म व मुत़ालआ तज़किये नफ़्स और दिल की इस्लाह़ का बाइ़स हो । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 32) ٭ क़ुव्वते ह़ाफ़िज़ा के लिये जहां और दवाएं इस्ति'माल और वज़ाइफ़ किये जाते हैं वहीं एक दवा, मुत़ालआ भी है । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 36) ٭ कोशिश कीजिये कि किताब हर वक़्त साथ रहे कि जहां मौक़अ़ मिले कुछ न कुछ मुत़ालआ कर लिया जाए और किताब की सोह़बत भी मुयस्सर रहे । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 36) ٭ मुत़ालआ करने के बा'द तमाम मुत़ालए़ को इब्तिदा से इन्तिहा तक सरसरी नज़र से देखा जाए और उस का एक ख़ुलासा अपने ज़ेहन में नक़्श कर लिया जाए । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 112) ٭ अपना एह़तिसाब करना भी फ़ाइदा मन्द है कि मुझे इस मुत़ालए़ से क्या ह़ासिल हुवा और कौन सा मवाद ज़ेहन नशीन हुवा और कौन सा नहीं । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 112) ٭ किसी बात को याद करने के लिये आंखें बन्द कर के याद दाश्त पर ज़ोर देना मुफ़ीद है । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 117) ٭ जो मुत़ालआ करें उसे अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ अपने घर वालों और दोस्तों से बयान करें इस त़रह़ भी मा'लूमात का ज़ख़ीरा त़वील मुद्दत तक हमारे दिमाग़ में मह़फ़ूज़ रहेगा । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 112) ٭ जो कुछ पढ़ें, उस की दोहराई (Repeat) करते रहिये । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 112) ٭ शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ मदनी मुज़ाकरों में इ़ल्मे दीन के रंग बिरंगे मदनी फूल इरशाद फ़रमाते हैं, इन मदनी मुज़ाकरों की बरकत से अपने इ़ल्म पर अ़मल करने, उसे दूसरों तक पहुंचाने और मज़ीद मुत़ालआ करने का जज़्बा पैदा होता है । (मुत़ालआ क्या, क्यूं और कैसे ?, स. 115)