Book Name:Rahmat e Ilahi Ka Mushtaaq Banany Waly Amaal
बन्दा अल्लाह पाक की रह़मत का ह़क़दार बन जाता है । अल्लाह पाक हमें भी नेक आमाल करने और गुनाहों से बचने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए क्यूंकि गुनाहों की नुह़ूसत से बन्दा अल्लाह पाक की रह़मत से मह़रूम हो जाता है । जैसा कि :
(1) गुनाहों के सबब रह़मते इलाही से मह़रूमी
ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन अ़लवी शाफे़ई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक की नज़रे रह़मत से मह़रूम होने और उस के नाराज़ होने की अ़लामत येह
है कि बन्दा गुनाहों में मुब्तला हो जाता है । (رسالۃ المذاکرۃ مع الاخوان المحبین من اہل الخیروالدین(مترجم)، ص۴۳) और एक गुनाह की नुह़ूसत येह होती है कि बन्दा दीगर गुनाहों में पड़ जाता है, लिहाज़ा गुनाह ख़्वाह छोटा हो या बड़ा, उस से बचने ही में आ़फ़िय्यत है । ह़ज़रते बिलाल बिन साद رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं : गुनाह के छोटा होने को न देखो बल्कि येह देखो कि तुम किस की ना फ़रमानी कर रहे हो । (الزواجر عن اقتراف الکبائر، مقدمة فی تعریف الکبیرة، خاتمة فی التحذیر۔۔الخ، ۱ /۲۷)
अगर गुनाह का इरादा करते वक़्त हमारी येह सोच बन जाए कि मैं जिस रब्बे करीम की ना फ़रमानी कर रहा हूं, वोह तो मुझे हर वक़्त, हर ह़ाल में देख रहा है, तो اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस त़रह़ काफ़ी ह़द तक गुनाहों से छुटकारा नसीब हो जाएगा । याद रखिए ! सारे ही गुनाह रह़मते इलाही से मह़रूमी का सबब हैं । आइए ! उन में से चन्द गुनाहों के बारे में सुनते हैं ।
(2) वालिदैन की ना फ़रमानी
अल्लाह पाक की रह़मत से मह़रूमी का एक सबब वालिदैन की ना फ़रमानी करना, उन्हें तक्लीफ़ पहुंचाना, उन की ख़िदमत से मह़रूम रेह कर अपनी बख़्शिश व मग़फ़िरत न करवाना भी है । रह़मते आ़लम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : (जिब्रईले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام ने दुआ़ की) जिस ने अपने वालिदैन या दोनों में से किसी एक को पाया लेकिन उन के साथ अच्छा सुलूक न किया और जहन्नम में दाख़िल हो गया, तो अल्लाह पाक उसे अपनी रह़मत से दूर करे । तो मैं ने कहा : आमीन । (المعجم الکبیر،الحدیث:۱۲۵۵۱،ج۱۲،ص۶۶)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! (अल्लाह ने हमें) वालिदैन (Parents) के साथ भलाई करने का ह़ुक्म दिया । इस से मालूम होता है कि वालिदैन की ख़िदमत बहुत ज़रूरी है । वालिदैन के साथ भलाई येह है कि ऐसी कोई बात न कहे और ऐसा कोई काम न करे जो उन के लिए बाइ़से तक्लीफ़ हो और अपने बदन और माल से उन की ख़ूब ख़िदमत करे, उन से मह़ब्बत करे, उन के पास उठने, बैठने, उन से गुफ़्तगू करने और दीगर तमाम कामों में उन का अदब करे, उन की ख़िदमत के लिए अपना माल उन्हें ख़ुश दिली से पेश करे और जब उन्हें ज़रूरत हो, उन के पास ह़ाज़िर रहे । (सिरात़ुल जिनान, 1 / 153)
हमें भी चाहिए कि अपने वालिदैन के साथ ह़ुस्ने सुलूक से पेश आएं और शरीअ़त के दाइरे में रेहते हुवे उन्हें राज़ी करने की हर मुमकिन कोशिश करें क्यूंकि उन की रिज़ा में अल्लाह पाक की रिज़ा और उन की नाराज़ी में अल्लाह पाक की नाराज़ी है ।