Rahmat e Ilahi Ka Mushtaaq Banany Waly Amaal

Book Name:Rahmat e Ilahi Ka Mushtaaq Banany Waly Amaal

2.   जब दो दोस्त आपस में मिलते हैं और मुसाफ़ह़ा करते हैं और नबी (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم) पर दुरूदे पाक पढ़ते हैं, तो उन दोनों के जुदा होने से पेहले पेहले दोनों के अगले पिछले गुनाह बख़्श दिए जाते हैं । (شعب الایمان، باب فی مقاربۃ وموادۃ اہل الدین ،فصل فی المصافحۃ والمعانقۃ ،الحدیث ۸۹۴۴، ج۶، ص۴۷۱)

* दोनों हाथों से मुसाफ़ह़ा करें । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 16, स. 98) * जितनी बार मुलाक़ात हो, हर बार मुसाफ़ह़ा करना मुस्तह़ब है । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 16, स. 97) * रुख़्सत होते वक़्त भी मुसाफ़ह़ा करें । सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ लिखते हैं : इस के मस्नून होने की तसरीह़ नज़रे फ़क़ीर से नहीं गुज़री मगर अस्ल मुसाफ़ह़ा का जवाज़ ह़दीस से साबित है, तो इस को भी जाइज़ ही समझा जाएगा । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 16, स. 98) * फ़क़त़ उंगलियों के छूने का नाम मुसाफ़ह़ा नहीं है, सुन्नत येह है कि दोनों हाथों से मुसाफ़ह़ा किया जाए और दोनों के हाथों के माबैन कपड़ा वग़ैरा कोई चीज़ ह़ाइल न हो । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 16, स. 98) * मुसाफ़ह़ा करते वक़्त सुन्नत येह है कि हाथ में रूमाल वग़ैरा ह़ाइल न हो, दोनों हथेलियां ख़ाली हों और हथेली से हथेली मिलनी चाहिए । (बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, ह़िस्सा : 16, स. 98) * मुस्कुरा कर गर्मजोशी से मुसाफ़ह़ा करें, दुरूद शरीफ़ पढ़ें और हो सके, तो येह दुआ़ भी पढ़ें : یَغْفِرُ اللہُ لَنَا وَلَکُمْ (यानी अल्लाह पाक हमारी और तुम्हारी मग़फ़िरत फ़रमाए) । * हर नमाज़ के बाद लोग आपस में मुसाफ़ह़ा करते हैं, येह जाइज़ है (ردالمحتار، کتاب الحظر والاباحۃ،فصل فی البیع ،۹/۶۸۲) * गले मिलने को "मुआ़नक़ा" केहते हैं और येह भी सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم से साबित है । (बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, ह़िस्सा : 16, स. 98) * सिर्फ़ तेह्बन्द बांध कर या पाजामा पेहने हों, उस वक़्त मुआ़नक़ा न करें बल्कि कुर्ता पेहना हुवा हो या कम अज़ कम चादर लिपटी हुई होनी चाहिए । (बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, ह़िस्सा : 16, स. 98) * ई़दैन में मुआ़नक़ा करना जाइज़ है । (बहारे शरीअ़त, सलाम का बयान, ह़िस्सा : 16, स. 90) * आ़लिमे दीन के हाथ, पाउं चूमना जाइज़ है । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 16, स. 99) * हाथ, पाउं वग़ैरा चूमने में येह एह़तियात़ ज़रूरी है कि मह़्ले फ़ितना न हो, अगर مَعَاذَ اللّٰہ शहवत के लिए किसी इस्लामी भाई से मुसाफ़ह़ा या मुआ़नक़ा किया, हाथ, पाउं चूमे या نَعُوْذُ بِاللّٰہ पेशानी का बोसा लिया, तो येह नाजाइज़ है । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : 16, स. 98, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!                                      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد