Book Name:Andheri Qabar
फ़ज़्लो करम से उस का अन्दरूनी ह़िस्सा ता ह़द्दे निगाह वसीअ़ हो चुका हो, क़ब्र में जन्नत की खिड़की खुली हुई हो और इस मिट्टी के ज़ाहिरी ढेर तले जन्नत का ह़सीन बाग़ मौजूद हो । दूसरी त़रफ़ इस मिट्टी के ढेर तले दफ़्न होने वाला अगर مَعَاذَاللہ बे नमाज़ी, रमज़ानुल मुबारक के रोज़े जानबूझ कर न रखने वाला, फ़र्ज़ होने के बा वुजूद ज़कात की अदाएगी में कन्जूसी करने वाला, ह़राम रोज़ी कमाने वाला, सूद व रिशवत का लेन देन करने वाला, लोगों के क़र्ज़े दबा लेने वाला, शराब पीने वाला, जुवा खेलने वाला, मुसलमानों की बिला इजाज़ते शरई़ दिल आज़ारियां करने वाला, चोरी करने वाला, डाका डालने वाला, अमानत में ख़ियानत करने वाला,फ़िल्में ड्रामे देखने, दिखाने वाला, गाने बाजे सुनने, सुनाने वाला, गाली गलोच, झूट, ग़ीबत, चुग़ली, तोहमत व बद गुमानी और तकब्बुर का आ़दी और मां-बाप का ना फ़रमान था, तो हो सकता है कि मिट्टी के इस पुर सुकून नज़र आने वाले ढेर तले बे क़रारी का आ़लम हो, जहन्नम की खिड़की खुली हुई हो, आग सुलग रही हो, सांप और बिच्छू दफ़्न होने वाले के बदन पर लिपटे हुवे हों और ऐसी चीख़ो पुकार मची हुई हो जिसे हम सुन नहीं सकते ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे इस्लामी भाइयो ! क़ब्र अपने अन्दर दफ़्न होने वाले से क्या केहती है ? आइए ! इस बारे में कुछ रिवायात सुनते हैं । चुनान्चे,
क़ब्र मुर्दे से क्या केहती है ?
ह़ज़रते अबुल ह़ज्जाज सुमाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से रिवायत है, अल्लाह पाक के आख़िरी नबी, रसूले अ़रबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : जब मय्यित को क़ब्र में उतार दिया जाता है, तो क़ब्र उस से ख़ित़ाब करती है : ऐ आदमी ! तेरा नास हो ! तू ने किस लिए मुझे फ़रामोश (यानी भुला) कर रखा था ? क्या तुझे इतना भी पता न था कि मैं फ़ितनों का घर हूं, तारीकी का घर हूं फिर तू किस बात पर मुझ पर अकड़ा अकड़ा फिरता था ? अगर वोह मुर्दा नेक बन्दे का हो, तो एक ग़ैबी आवाज़ क़ब्र से केहती है : ऐ क़ब्र ! अगर येह उन में से हो जो नेकी का ह़ुक्म करते रहे और बुराई से मन्अ़ करते रहे, तो फिर (तेरा सुलूक क्या होगा ?) क़ब्र केहती है : अगर येह बात हो, तो मैं उस के लिए गुल्ज़ार (बाग़) बन जाती हूं । चुनान्चे, फिर उस शख़्स का बदन नूर में तब्दील हो जाता है और उस की रूह़ बारगाहे इलाही की त़रफ़ परवाज़ कर जाती है । (مسند ابی یعلی، ۶/۶۷، حدیث:۶۸۳۵)
एक और मक़ाम पर फ़रमाया : जब मुर्दे के साथ आने वाले लौट कर चलते हैं, तो मुर्दा बैठ कर उन के क़दमों की आवाज़ सुनता है और क़ब्र से पेहले कोई उस के साथ हम कलाम नहीं होता । क़ब्र केहती है : ऐ आदमी ! क्या तू ने मेरे ह़ालात न सुने थे ? क्या मेरी तंगी, बदबू, हौलनाकी और कीड़ों से तुझे नहीं डाराया गया था ? अगर ऐसा था, तो फिर तू ने क्या तय्यारी की ? (شرح الصدور، باب مخاطبۃ القبر للمیت،ص ۱۱۴)