Andheri Qabar

Book Name:Andheri Qabar

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आज के बयान का मौज़ूअ़ है "अन्धेरी क़ब्र" जिस में हम मौत आने और उस के बाद क़ब्र में पेश आने वाले उमूर से मुतअ़ल्लिक़ सुनेंगे । पूरा बयान तवज्जोह के साथ सुनने की दरख़ास्त है ।

एक दिन मरना है आख़िर मौत है !

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ज़िन्दगी, मौत की अमानत है, हर वोह जान जिस ने ज़िन्दगी का जाम पी लिया है, उस ने मौत का प्याला भी पीना है । अमीर हो या ग़रीब, बादशाह हो या वज़ीर, चौकीदार हो या दुकानदार, प्रोफे़सर हो या अनपढ़, आ़लिम हो या ग़ैरे आ़लिम, पीर हो या फ़क़ीर, मुस्लिम हो या ग़ैर मुस्लिम, अल ग़रज़ ! इन्सान जिस ह़ैसिय्यत का भी ह़ामिल हो, दुन्या के किसी भी गोशे में पहुंच जाए और मौत से बचने के लिए जितने भी जतन कर ले लेकिन मौत से हरगिज़ पीछा नहीं छुड़ा सकता क्यूंकि पारह 4, सूरए आले इ़मरान की आयत नम्बर 185 में इरशाद होता है :

كُلُّ  نَفْسٍ   ذَآىٕقَةُ  الْمَوْتِؕپ ۴، الِ عمران: ۱۸۵(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : हर जान मौत का मज़ा चखने वाली है ।

मुफ़स्सिरे क़ुरआन, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस आयते मुबारका के तह़्त फ़रमाते हैं : इन्सान हों या जिन्न या फ़िरिश्ता, अल्लाह पाक के सिवा हर एक को मौत आनी है और हर चीज़ फ़ानी है । (तफ़्सीरे नूरुल इ़रफ़ान, स. 117) पारह 5, सूरतुन्निसा की आयत नम्बर 78 में इरशाद होता है :

اَیْنَ مَا تَكُوْنُوْا یُدْرِكْكُّمُ الْمَوْتُ وَ لَوْ كُنْتُمْ فِیْ بُرُوْجٍ مُّشَیَّدَةٍؕ)    پ ۵، النشآء : ۷۸(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तुम जहां कहीं भी होगे, मौत तुम्हे ज़रूर पकड़ लेगी, अगर्चे तुम मज़बूत़ क़ल्ओ़ं में हो

        इस आयते मुबारका के तह़्त "तफ़्सीरे नई़मी" में है : हर शख़्स की मौत का वक़्त, मौत की जगह मुक़र्रर है, कोई उस से किसी तदबीर और किसी ह़ीले से बच नहीं सकता, तुम जहां कहीं रहो, अपने वक़्त पर मौत तुम को ज़रूर पहुंचेगी अगर्चे तुम मज़बूत़ क़ल्ओ़ं या आसमान के बुर्जों में पहुंच जाओ, ज़िन्दगी के लिए कितने ही ह़िफ़ाज़त के सामान बना लो मगर मरोगे ज़रूर । (तफ़्सीरे नई़मी, 5 / 242)

क़ब्र से मुतअ़ल्लिक़ बुज़ुर्गों के मामूलात

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जब मरेंगे, तो सफ़रे आख़िरत का आग़ाज़ होगा, जिस की पेहली मन्ज़िल "क़ब्र" है जो आख़िरत के मर्ह़लों में सब से अहम मर्ह़ला है । हमारे बुज़ुर्गों का मामूल था कि क़ब्र को देखते ही रोते रोते हिचकी बंध जाती बल्कि हमारे बख़्शे बख़्शाए आक़ा, हमें बख़्शवाने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم का क़ब्र के तअ़ल्लुक़ से ख़ौफ़े ख़ुदा मुलाह़ज़ा हो । चुनान्चे,