Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

खाना कम देखे, तो केह दे : بَارَکَ اللّٰہ (यानी अल्लाह करीम बरकत दे) । येह भी मालूम हुवा ! ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से अपनी इ़बादात नहीं छुपानी चाहिएं बल्कि ज़ाहिर कर दी जाएं ताकि ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इस पर गवाह बन जाएं, येह इज़्हार रिया (यानी दिखलावा करना) नहीं । (ह़ज़रते बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के रोज़े का सुन कर जो कुछ फ़रमाया गया, उस की शर्ह़ में मुफ़्ती साह़िब लिखते हैं :) यानी आज की रोज़ी हम तो अपनी यहीं खाए लेते हैं और ह़ज़रते बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ इस के इ़वज़ (यानी बदले में) जन्नत में खाएंगे, वोह इ़वज़ (यानी बदला) इस से बेहतर भी होगा और ज़ियादा भी । ह़दीस बिल्कुल अपने ज़ाहिरी माना पर है, वाके़ई़ उस वक़्त रोज़ादार की हर हड्डी व जोड़ बल्कि रग रग तस्बीह़ (यानी अल्लाह पाक की पाकी बयान) करती है जिस का रोज़ेदार को पता नहीं होता मगर सरकारे मदीना صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनते हैं । (मिरआतुल मनाजीह़, 3 / 202, मुलख़्ख़सन)

          (अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ फ़रमाते हैं :) अगर मुत़ालआ़ कर लिया हो, तब भी दोनों रिसाले : (1) कफ़न की वापसी मअ़ रजब की बहारें और (2) आक़ा का महीना पढ़ लीजिए नीज़ हर साल शाबानुल मुअ़ज़्ज़म में फ़ैज़ाने सुन्नत, जिल्द अव्वल का बाब "फै़ज़ाने रमज़ान" भी ज़रूर पढ़ लिया करें । हो सके, तो ई़दे मेराजुन्नबी की निस्बत से 127 या 27 रिसाले या जितनी तौफ़ीक़ हो, फै़ज़ाने रमज़ान भी तक़्सीम फ़रमाइए और ढेरों ढेर सवाब कमाइए ।

          तमाम इस्लामी भाइयों से बिल उ़मूम और जामिआ़तुल मदीना और मदारिसुल मदीना के तमाम क़ारी साह़िबान, असातिज़ा, नाज़िमीन और त़लबा की ख़िदमतों में बिल ख़ुसूस तड़पती हुई गुज़ारिश है कि बराहे करम ! (मेरे जीते जी और मरने के बाद भी) ज़कात, फ़ित्ऱा, क़ुरबानी की खालें और दीगर चन्दा जम्अ़ करने में बढ़ चढ़ कर ह़िस्सा लिया कीजिए । (इस्लामी बहनें दीगर इस्लामी बहनों और मह़ारिम को चन्दे की तरग़ीब दिलाएं) ख़ुदा की क़सम ! मुझे उन असातिज़ा और त़लबा के बारे में सुन कर बहुत ख़ुशी होती है जो अपने गांव या शहर में जाने की ख़्वाहिश को क़ुरबान कर के रमज़ानुल मुबारक जामिआ़त में गुज़ारते और अपनी मजलिस की हिदायात के मुत़ाबिक़ चन्दे के स्टॉल्ज़ पर ज़िम्मेदारियां संभालते हैं । जो असातिज़ा और त़लबा बिग़ैर किसी उ़ज़्र के सिर्फ़ सुस्ती या ग़फ़्लत के बाइ़स दिलचस्पी न होने का मुज़ाहरा करते हैं, उन की वज्ह से मेरा दिल रोता है ।

ख़ुसूसी नुक्ता

          जो भी इस्लामी भाई या इस्लामी बहनें चन्दा इकठ्ठा करना चाहते हैं, उन्हें चन्दे के ज़रूरी अह़काम मालूम होना फ़र्ज़ है, हर एक की ख़िदमत में ताकीद है कि अगर पढ़ चुके हैं, तब भी मक्तबतुल मदीना की किताब "चन्दे के बारे में सुवाल जवाब" का दोबारा मुत़ालआ़ फ़रमा लीजिए ।

दुआ़ए अ़त़्त़ार

          या अल्लाह पाक ! रमज़ानुल मुबारक में चन्दे और बक़र ई़द में खालों के लिए कोशिश कर के जो आ़शिक़ाने रसूल मेरा दिल ख़ुश करते हैं, तू उन से हमेशा के लिए ख़ुश हो जा और उन के सदके़ मुझ पापी व बदकार, गुनहगारों के सरदार से भी हमेशा के लिए राज़ी हो जा । या अल्लाह