Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat
एक इस्लामी भाई की पिछली ज़िन्दगी गुनाहों में गुज़र रही थी, हर एक के मुआ़मले में टांग अड़ाना, लोगों से लड़ाई मोल लेना, बात बात पर मार धाड़ पर उतर आना जैसी बुराइयों में गिरिफ़्तार थे । ख़ुश क़िस्मती से एक इस्लामी भाई की इनफ़िरादी कोशिश पर येह रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी अ़शरे में अपने अ़लाके़ की मस्जिद में मोतकिफ़ हो गए, जहां उन्हें बहुत सुकून मिला, उन्हों ने मज़ीद 2 साल एतिकाफ़ की सआ़दत ह़ासिल की । उन की मस्जिद के मोअज़्ज़िन साह़िब इनफ़िरादी कोशिश कर के उन्हें आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के आ़लमी मदनी मर्कज़, फै़ज़ाने मदीना में हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में ले आए । एक मुबल्लिग़े दावते इस्लामी सुन्नतों भरा बयान कर रहे थे जो सर पर इ़मामा शरीफ़ का ताज सजाए हुवे थे, मुबल्लिग़ के चेहरे की कशिश और नूरानिय्यत ने उन का दिल मोह लिया और वोह दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो गए, اَلْحَمْدُ لِلّٰہ उन्हों ने एक मुठ्ठी दाढ़ी भी सजा ली ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام की त़रह़ अल्लाह पाक के नेक बन्दे, यानी औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن भी ख़ौफे़ ख़ुदा के सबब कसरत से आंसू बहाते हैं । कई औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के बारे में मन्क़ूल है कि ख़ौफे़ ख़ुदा में कसरत से रोने के सबब उन की बीनाई ख़त्म हो गई मगर उन्हों ने रोना नहीं छोड़ा । आइए ! तरग़ीब के लिए ख़ौफे़ ख़ुदा में रोने पर औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के 2 वाक़िआ़त सुनते हैं ।
औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن का ख़ौफे़ ख़ुदा में रोना
ह़ज़रते अबू बिशर सालेह़ मुर्री رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ बहुत बड़े मुह़द्दिस और ज़बरदस्त मुबल्लिग़ थे, बयान के दौरान ख़ुद इन की येह कैफ़िय्यत होती थी कि ख़ौफे़ इलाही से कांपते, लरज़ते रेहते और इस क़दर फूट फूट कर रोते जैसे कोई औ़रत अपने इक्लौते बच्चे के मर जाने पर रोती है । कभी कभी तो कसरत से रोने और बदन के लरज़ने से इन के आज़ा के जोड़ अपनी जगह से हिल जाते थे । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के ख़ौफे़ ख़ुदा का येह आ़लम था कि अगर किसी क़ब्र को देख लेते, तो दो दो, तीन तीन दिन ह़ैरान व ख़ामोश रेहते और खाना, पीना छोड़ देते । (اولیائے رجال الحدیث ص۱۵۱, अज़ : ख़ौफे़ ख़ुदा)
सुल्त़ानुल हिन्द, ह़ज़रते ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ पर ख़ौफे़ ख़ुदा इस क़दर ग़ालिब था कि हमेशा ख़ौफे़ इलाही से कांपते और गिड़गिड़ाते रेहते थे । लोगों को ख़ौफे़ ख़ुदा की तल्क़ीन करते हुवे इरशाद फ़रमाया करते : ऐ लोगो ! अगर तुम ज़मीन के नीचे सोए हुवे लोगों का ह़ाल जान लो, तो मारे ख़ौफ़ के खड़े खड़े पिघल जाओ । (मुई़नुल अरवाह़, स. 185, मुलख़्ख़सन)
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का ज़िक्रे ख़ैर
ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! ह़ज़रते ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ और दीगर औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن का ख़ौफे़ ख़ुदा से रोना मरह़बा ! 6 रजबुल मुरज्जब को सुल्त़ानुल हिन्द, ह़ज़रते ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ का उ़र्स मुबारक निहायत ही अ़क़ीदत और धूम धाम से