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Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

तीन माह के रोज़े

          रजबुल मुरज्जब के क़द्रदानो ! सीखने और सिखाने और रिज़्के़ ह़लाल कमाने में रुकावट न हो, मां-बाप भी बे सबब मन्अ़ न करें, किसी का भी ह़क़ ज़ाएअ़ न होता हो, तो जल्दी जल्दी और बहुत जल्दी मुसल्सल तीन माह के या रमज़ानुल मुबारक के मुकम्मल फ़र्ज़ रोज़ों के साथ साथ जिस से जितने बन पड़ें उतने नफ़्ल रोज़ों के लिए कमर बस्ता हो जाए, सह़री और इफ़्त़ार में कम खाने की आ़दत बनाए । काश ! हर घर में और मेरे तमाम मदारिसुल मदीना और तमाम जामिआ़तुल मदीना में रोज़ों की बहारें आ जाएं, बस रजब शरीफ़ से ही रोज़ों का आग़ाज़ फ़रमा दीजिए ।

रजब के इब्तिदाई तीन रोज़ों की फ़ज़ीलत

          रजब शरीफ़ के इब्तिदाई तीन रोज़ों के फ़ज़ाइल की भी क्या बात है ! ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह इबने अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا से रिवायत है, रसूल करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने रह़मत निशान है : रजब के पेहले दिन का रोज़ा तीन साल के गुनाहों को मिटा देता है, दूसरे दिन का रोज़ा दो साल के और तीसरे दिन का रोज़ा एक साल के गुनाहों को मिटा देता है फिर हर दिन का रोज़ा एक महीने के गुनाहों को मिटा देता है । (جامِع صغِیر لِلسُّیُوطی ، ص۳۱۱  ، حدیث : ۵۰۵۱ ، فَضائِلُ شَہْرِ رَجَب  لِلخَلّال ، ص  ۶۴)

        اَلْحَمْدُ لِلّٰہ नफ़्ल रोज़ों के भी बड़े फ़ज़ाइल हैं । आइए ! तरग़ीब के लिए 2 अह़ादीसे मुबारका सुनते हैं । चुनान्चे,

1﴿...फ़िरिश्ते दुआ़ए मग़फ़िरत करते हैं

          ह़ज़रते उम्मे अ़म्मारा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا फ़रमाती हैं : ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मेरे यहां तशरीफ़ लाए । मैं ने आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ख़िदमते अक़्दस में खाना पेश किया, तो इरशाद फ़रमाया : तुम भी खाओ । मैं ने अ़र्ज़ की : मैं रोज़े से हूं । तो रह़मते आ़लम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने फ़रमाया : जब तक रोज़ादार के सामने खाना खाया जाता है, फ़िरिश्ते उस (रोज़ादार) के लिए दुआ़ए मग़फ़िरत करते रेहते हैं । (تِرمِذی ، ۲  / ۲۰۵  ، حدیث :  ۷۸۵)

2﴿...रोज़ादार की हड्डियां कब तस्बीह़ करती हैं ?

          ह़ज़रते बिलाल رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ, नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ख़िदमते अक़्दस में ह़ाज़िर हुवे, उस वक़्त ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ नाश्ता कर रहे थे । फ़रमाया : ऐ बिलाल ! नाश्ता कर लो । अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! मैं रोज़ादार हूं । रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने फ़रमाया : हम अपनी रोज़ी खा रहे हैं और बिलाल का रिज़्क़ जन्नत में बढ़ रहा है । ऐ बिलाल ! क्या तुम्हें ख़बर है कि जब तक रोज़ेदार के सामने कुछ खाया जाए, तब तक उस की हड्डियां तस्बीह़ करती हैं और उसे फ़िरिश्ते दुआ़एं देते हैं । ( شُعَبُ الْاِیمان ، ۳  /  ۲۹۷ ، حدیث :  ۳۵۸۶)

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : इस से मालूम हुवा ! अगर खाना खाते में कोई आ जाए, तो उसे भी खाने के लिए बुलाना सुन्नत है मगर दिली इरादे से बुलाए, झूटी तवाज़ोअ़ (झूटी मेहमान नवाज़ी) न करे और आने वाला भी झूट बोल कर येह न कहे : मुझे ख़्वाहिश नहीं । ताकि भूक और झूट का इजतिमाअ़ न हो जाए बल्कि अगर (न खाना चाहे या)



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