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Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

है ताकि येह आ़शिक़ाने रसूल दिलजमई़ के साथ इ़ल्मे दीन के ह़ल्क़ों और मदनी मुज़ाकरों में भरपूर तवज्जोह के साथ शिर्कत कर सकें । दावते इस्लामी के आ़लमी मदनी मर्कज़, फै़ज़ाने मदीना में होने वाले मदनी मुज़ाकरों के इजतिमाआ़त में भी आ़शिक़ाने रसूल के लिए लंगरे रज़विय्या का एहतिमाम किया जाता है । लंगरे रज़विय्या की मद्द में करोड़ों रुपये के अख़राजात होते हैं, इस कारे ख़ैर में भी कई आ़शिक़ाने रसूल अपना ह़िस्सा शामिल करते हैं, इस साल भी اِنْ شَآءَ اللّٰہ मुल्क व बैरूने मुल्क सैंक्ड़ों मक़ामात पर पूरे माह और आख़िरी अ़शरे का एतिकाफ़ होगा जिस में हज़ारों आ़शिक़ाने रमज़ान, माहे रमज़ान की मुबारक साअ़तों से बरकतें लूटने की सआ़दत ह़ासिल करेंगे । तमाम आ़शिक़ाने रसूल रिज़ाए इलाही और दीगर अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ लंगरे रज़विय्या की मद्द में अपना ह़िस्सा शामिल करने की सआ़दत ह़ासिल करें ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

ख़ुत़्बे के 7 अह़काम

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आइए ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "फै़ज़ाने जुम्आ़" से ख़ुत़्बे के चन्द अह़काम सुनते हैं : ٭ ह़दीसे पाक में है : जिस ने जुम्आ़ के दिन लोगों की गरदनें फलांगीं, उस ने दोज़ख़ की त़रफ़ पुल बनाया । (تِرمِذی ، ۲ / ۴۸ ، حدیث : ۵۱۳) इस के एक माना येह हैं कि उस पर चढ़ चढ़ कर लोग जहन्नम में दाख़िल होंगे । (ह़ाशियए बहारे शरीअ़त, 1 / 761, 762) ٭ ख़त़ीब की त़रफ़ मुंह कर के बैठना सुन्नते सह़ाबा है । ٭ आला ह़ज़रत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ख़ुत़्बे में ह़ुज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का नामे पाक सुन कर दिल में दुरूद पढ़ें कि ज़बान से सुकूनत (यानी ख़ामोशी) फ़र्ज़ है । (फ़तावा रज़विय्या, 8 / 365) ٭ "दुर्रे मुख़्तार" में है : ख़ुत़्बे में खाना, पीना, कलाम करना अगर्चे سُبْحٰنَ اللّٰہ केहना, सलाम का जवाब देना या नेकी की बात बताना ह़राम है । (دُرِّمُختار ،  ۳ / ۳۹) ٭ आला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ब ह़ालते ख़ुत़्बा चलना ह़राम है । यहां तक उ़लमाए किराम फ़रमाते हैं : अगर ऐसे वक़्त आया   कि ख़ुत़्बा शुरूअ़ हो गया, तो मस्जिद में जहां तक पहुंचा, वहीं रुक जाए, आगे न बढ़े कि येह अ़मल होगा और ह़ाले ख़ुत़्बा में कोई अ़मल रवा (यानी जाइज़) नहीं । (फ़तावा रज़विय्या, 8 / 333) ٭ आला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ख़ुत़्बे में किसी त़रफ़ गरदन फेर कर देखना (भी) ह़राम है । (फ़तावा रज़विय्या, 8 / 334)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد



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