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Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

के नफ़्ल रोज़े रखने की बरकत से माहे रमज़ान के फ़र्ज़ रोज़े रखने में आसानी होगी और यूं फ़र्ज़ रोज़ों के लिए पेहले से तय्यारी भी हो जाएगी । اِنْ شَآءَ اللّٰہ

          मन्क़ूल है : छटे आसमान के दरवाज़े पर रजब के महीने के दिन लिखे हुवे हैं, अगर कोई शख़्स रजब में एक रोज़ा रखे और उसे परहेज़गारी से पूरा करे, तो वोह दरवाज़ा और वोह (रोज़े वाला) दिन उस बन्दे के लिए अल्लाह पाक से मग़फ़िरत त़लब करेंगे और अ़र्ज़ करेंगे : या अल्लाह ! इस बन्दे को बख़्श दे । जब कि प्यारे नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने आ़लीशान है : रजब में एक दिन और रात है, जो उस दिन रोज़ा रखे और रात को इ़बादत करे, तो गोया उस ने सौ साल के रोज़े रखे, सौ साल रातों को जाग कर अल्लाह करीम की इ़बादत की और येह रजब की सत्ताईस तारीख़ है । (شُعَبُ الْاِیْمَان ،  ۳ / ۳۷۴ ،  حدیث : ۳۸۱۱)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! रजबुल मुरज्जब के रोज़े रखने वालों के तो वारे ही नियारे हैं । रजबुल मुरज्जब के रोज़े रखने वालों के लिए अल्लाह पाक ने जन्नत में ख़ास मह़ल तय्यार फ़रमाया है, उन ख़ुश नसीबों को अल्लाह पाक "रजब" नामी नहर से सैराब फ़रमाएगा, उन के लिए दोज़ख़ के दरवाज़े बन्द और जन्नती दरवाज़े खोल दिए जाएंगे, उन के रोज़े गुनाहों के मिटने का ज़रीआ़ बन जाएंगे और क़ियामत के दिन की ना क़ाबिले बरदाश्त गर्मी और भूक, प्यास में उन के खाने, पीने और आराम करने का इन्तिज़ाम किया जाएगा ।

          नफ़्ल रोज़ों के इस क़दर ज़बरदस्त फ़ज़ाइलो बरकात सुनने के बाद तो हम में से हर एक को कोशिश करनी चाहिए कि फ़र्ज़ रोज़ों के साथ साथ नफ़्ल रोज़ों का भी कसरत से एहतिमाम किया करे । रजबुल मुरज्जब के आने से तो वैसे ही रोज़े रखने का गोया मौसिम शुरूअ़ हो जाता है, पेहले रजबुल मुरज्जब के रोजे़ फिर इस के बाद शाबानुल मुअ़ज़्ज़म के रोज़े । आइए ! अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ का नफ़्ल रोज़ों की तरग़ीब और फ़ज़ाइल पर मुश्तमिल एक ख़ूबसूरत मक्तूब सुनते हैं ।

मक्तूबे अ़त़्त़ार

          بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ ط सगे मदीना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी की जानिब से तमाम इस्लामी भाइयों, इस्लामी बहनों, मदारिसुल मदीना और जामिआ़तुल मदीना के असातिज़ा, त़लबा, मोअ़ल्लिमात और त़ालिबात की ख़िदमात में काबे शरीफ़ के गिर्द घूमता हुवा, गुम्बदे ख़ज़रा को चूमता हुवा, रजबुल मुरज्जब, शाबानुल मुअ़ज़्ज़म और रमज़ानुल मुबारक के रोज़ादारों की बरकतों से मालामाल झूमता हुवा सलाम :

اَلسَّلَامُ عَلَیْکُمْ وَرَحْمَۃُ اللّٰہِ وَ بَرَکٰتُہٗ          اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ عَلٰی کُلِّ حَالٍ

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ एक बार फिर ख़ुशी के दिन आ गए हैं, माहे रजबुल मुरज्जब की आमद हो चुकी है, इस माहे मुबारक में इ़बादत का बीज बोया जाता है, शाबानुल मुअ़ज़्ज़म में गुनाहों पर शर्मिन्दगी के आंसूओं से पानी दिया जाता और माहे रमज़ानुल मुबारक में रह़मत की फ़सल काटी जाती है ।

 



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