Book Name:Ummat e Mustafa Ki Khasusiyaat
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ अपनी उम्मत से कितनी मह़ब्बतो उल्फ़त फ़रमाते हैं और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को अपनी उम्मत का कितना ख़याल है जब कि दूसरी जानिब अगर हम इस उम्मत के ह़ाले ज़ार का जाइज़ा लें, तो येह दिल ख़राश ह़क़ीक़त (Reality) सामने आएगी कि उम्मते मुस्लिमा की अक्सरिय्यत अब अपने उस मेहरबान आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के एह़सानात और फ़रामीन को भुला कर फ़राइज़ व वाजिबात की अदाएगी से ग़ाफ़िल हो कर नफ़्सो शैत़ान की पैरवी में मश्ग़ूल है, क़ुरआने करीम के इरशादात को भुला बैठी है, इ़ल्म की अहम्मिय्यत समझने से मह़रूम दिखाई देती है, अपने बुज़ुर्गों की तालीमात को बिल्कुल फ़रामोश कर चुकी है, सुन्नतों से मुंह मोड़ कर फै़शन परस्ती की दलदल में धंस्ती जा रही है, अल्लाह पाक और बन्दों के ह़ुक़ूक़ की अदाएगी की अहम्मिय्यत से ग़ाफ़िल हो चुकी है, रिश्ता काटने की आफ़त में मुब्तला है जब कि झूट, ग़ीबत, ह़सद, तकब्बुर, वादा ख़िलाफ़ी, ज़ुल्म, ऐ़ब तलाश करने, वालिदैन की ना फ़रमानी, बे ह़याई और बे पर्दगी जैसी कई तबाह कुन बुराइयों का शिकार है ।
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! अगर हम चाहती हैं कि हम ऐसी उम्मती बन जाएं जैसी एक उम्मती को होना चाहिए, तो हमें चाहिए कि हम अपने आप को बयान कर्दा बुराइयों से बचाएं, सुन्नतें अपनाएं, इ़ल्मे दीन ह़ासिल कर के दूसरी इस्लामी बहनों तक पहुंचाएं, अल ग़रज़ ! हमारा ज़ाहिरो बात़िन ऐसा संवर जाए कि जो भी इस्लामी बहन देखे बे साख़्ता पुकार उठे : "उम्मती हो, तो ऐसी !" तो आइए ! इ़श्के़ रसूल का जाम पीने, कामिल उम्मती बनने, अपने ज़ाहिरो बात़िन को सुन्नतों के सांचे में ढालने और गुनाहों से पीछा छुड़ाने के लिए आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो जाइए और नेकी की दावत की धूमें मचाने में दावते इस्लामी का साथ दीजिए ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान को इख़्तिताम की त़रफ़ लाते हुवे सुन्नत की फ़ज़ीलत और चन्द सुन्नतें और आदाब बयान करने की सआ़दत ह़ासिल करती हूं । शहनशाहे नुबुव्वत, मुस्त़फ़ा जाने रह़मत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने जन्नत निशान है : जिस ने मेरी सुन्नत से मह़ब्बत की, उस ने मुझ से मह़ब्बत की और जिस ने मुझ से मह़ब्बत की, वोह जन्नत में मेरे साथ होगा । (مشکاۃ المصابیح،کتاب الایمان،باب الاعتصام بالکتاب والسنۃ،۱/۹۷،حدیث:۱۷۵)