Book Name:Tabarukat Ki Barakaat
से आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ अपना मुबारक हाथ धोते, सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان उसे अपने चेहरों और बदन के ह़िस्सों पर बरकत ह़ासिल करने की ग़रज़ से मल लिया करते, आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के बचे हुवे खाने से बरकत ह़ासिल करते, आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के पसीनए मुबारक, लुआ़बे मुबारक, बाल मुबारक, अंगूठी मुबारक, बिस्तरे मुबारक, लिबासे मुबारक, चारपाई मुबारक और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इस्तिमाल फ़रमाई हुई चटाई मुबारक से भी बरकतें ह़ासिल करते, अल ग़रज़ ! हर वोह चीज़ जिसे रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से थोड़ी या ज़ियादा निस्बत ह़ासिल हो जाती, सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان उसे अपने लिये बरकत ह़ासिल करने का ज़रीआ़ बना लेते थे । अह़ादीसे मुबारका में इस त़रह़ के दरजनों वाक़िआ़त मौजूद हैं । आइये ! बरकत ह़ासिल करने के लिये 3 वाक़िआ़त सुनती हैं । चुनान्चे,
मन्क़ूल है : मश्हूर सह़ाबिये रसूल, ह़ज़रते अमीरे मुआ़विया رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के पास नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की मुबारक क़मीस और मुक़द्दस नाख़ुनों के कुछ टुक्ड़े मह़फ़ूज़ थे । जब आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ का वक़्ते विसाल आया, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने वसिय्यत फ़रमाई कि मुझे उस क़मीस में कफ़न दिया जाए (जो नबिय्ये रह़मत صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इन्हें अ़त़ा फ़रमाई थी) और वोह मुबारक क़मीस मेरे जिस्म से बिल्कुल मिला कर रखी जाए जब कि रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के मुबारक नाख़ुनों के बारे में वसिय्यत फ़रमाई कि बारीक कर के आंखों और मुंह पर रख दिये जाएं । इस के बाद आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने फ़रमाया : येह काम ज़रूर कर लेना और मुझे सब से ज़ियादा रह़्मो करम फ़रमाने वाले रब्बे करीम के ह़वाले कर देना । (اسدالغابۃ فی معرفۃ الصحابۃ،باب المیم ولعین،۵/۲۲۳)
मुस्लिम शरीफ़ में है : अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की साह़िबज़ादी, ह़ज़रते अस्मा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के पास मदनी आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का एक जुब्बा (Jubbah) था । (एक मरतबा) आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا ने वोह जुब्बा निकाला और फ़रमाया : येह जुब्बा रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का है, नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इसे पहना करते थे, अब हम इसे बीमारों के लिये धोते हैं और इस से शिफ़ा ह़ासिल करते हैं । (مسلم،کتاب اللباس و الزینۃ،باب تحریم لبس الحریر…الخ،حدیث:۲۰۶۹،ص۸۸۳)
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब लोग इस की ज़ियारत करने आते थे, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا येह फ़रमा कर ज़ियारत कराती थीं कि येह ह़ुज़ूरे पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ विसाले ज़ाहिरी से पहले पहना करते थे, जिस से मालूम होता है कि रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के लिबास की ज़ियारत कराना सुन्नते सह़ाबा है, जैसा कि आज कल बाल मुबारक की ज़ियारत कराई जाती है । मालूम हुवा ! बुज़ुर्गों के तबर्रुकात की ज़ियारत कराना, उन का लिबास धो कर बीमारों को पिलाना सुन्नते