Fikr-e-Akhirat

Book Name:Fikr-e-Akhirat

और तुम्हारा इस ह़ाल में सुब्ह़ करना कि तुम ने इ़ल्म का एक बाब सीखा हो, जिस पर अ़मल किया गया हो या न किया गया हो, तो येह तुम्हारे लिये हज़ार रक्अ़त नवाफ़िल पढ़ने से बेहतर है । (ابن ماجہ، کتاب السنة، ۱/۱۴۲،حدیث:۲۱۹)

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! कई इस्लामी भाई मदनी मुज़ाकरे की बरकत से अपनी गुनाहों भरी ज़िन्दगी से तौबा कर चुके हैं, लिहाज़ा हमें चाहिये कि हम ख़ुद भी हर हफ़्ते मदनी मुज़ाकरा देखने को यक़ीनी बनाएं और दूसरे इस्लामी भाइयों को भी मदनी मुज़ाकरा देखने की दावत देते रहें । हफ़्तावार मदनी मुज़ाकरे के इ़लावा मुख़्तलिफ़ मवाके़अ़ पर भी मदनी मुज़ाकरों का सिलसिला होता है, मसलन मोह़र्रमुल ह़राम के 10 मदनी मुज़ाकरे, माहे रबीउ़ल अव्वल (बारहवीं शरीफ़) के 12 मदनी मुज़ाकरे, माहे रबीउ़ल आख़िर (ग्यारहवीं शरीफ़) के  11 मदनी मुज़ाकरे, माहे रमज़ान में रोज़ाना 2 मदनी मुज़ाकरे, माहे ज़ुल ह़िज्जतिल ह़राम के 10 मदनी मुज़ाकरे वग़ैरा ।

            12 मदनी कामों में से हफ़्तावार इस मदनी काम "मदनी मुज़ाकरा" की तफ़्सीली मालूमात जानने के लिये मक्तबतुल मदीना के रिसाले "हफ़्तावार मदनी मुज़ाकरा" का मुत़ालआ़ कीजिये । तमाम ज़िम्मेदाराने दावते इस्लामी बिल ख़ुसूस हफ़्तावार मदनी मुज़ाकरा की मजालिस के निगरान व अराकीन तो इस रिसाले का लाज़िमी मुत़ालआ़ फ़रमाएं । येह रिसाला मक्तबतुल मदीना पर दस्तयाब होने के साथ साथ दावते इस्लामी की वेबसाइट www.dawateislami.net से भी पढ़ा जा सकता है ।

          आइये ! बत़ौरे तरग़ीब मदनी मुज़ाकरा सुनने की बरकत से दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता होने वाले शख़्स का वाक़िआ़ सुनते हैं । चुनान्चे,

इ़श्के़ मुस्त़फ़ा से दिल रौशन हो गया

          मुल्के अमीरे अहले सुन्नत के एक इस्लामी भाई सुन्नतों से दूर फै़शन के नशे में गुम थे, नए फै़शन वाले लिबास पहनना, फ़ुज़ूलिय्यात में अपने क़ीमती लम्ह़ात ज़ाएअ़ करना उन का मामूल था, ज़िक्रे इलाही से बिल्कुल ग़ाफ़िल हो चुके थे । नेकियों भरी ज़िन्दगी गुज़ारने का ज़ेहन कुछ यूं बना कि एक बार उन्हें मदनी मुज़ाकरा सुनने की सआ़दत मिल गई, इस की बरकत से उन की ज़िन्दगी का रुख़ ही बदल गया । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के आसान अन्दाज़ में बयान की जाने वाली ढेरों ढेर मालूमात का अनमोल ख़ज़ाना लूटने का सुनेहरी मौक़अ़ मिला, ख़ौफे़ ख़ुदा और इ़श्के़ मुस्त़फ़ा की किरनों से उन का दिल रौशन हो गया, पिछली ज़िन्दगी पर शर्मिन्दगी होने लगी, लिहाज़ा उन्हों ने बक़िय्या ज़िन्दगी को ग़नीमत जानते हुवे फै़शन (Fashion) की नुह़ूसत से जान छुड़ाई, सुन्नतों पर अ़मल करने और नमाज़ों की पाबन्दी का पुख़्ता इरादा कर लिया, सर पर इ़मामा शरीफ़ सजा लिया, दाढ़ी शरीफ़ से चेहरा सजा लिया और नेकियों पर इस्तिक़ामत पाने के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो गए जब कि नेकी की दावत की धूमें मचाने के लिये हर माह 3 दिन के क़ाफ़िले में सफ़र करना उन का मामूल बन गया ।