Narmi Kaisy Paida Karain

Book Name:Narmi Kaisy Paida Karain

ही नुक़्सान है । किसी ने क्या ख़ूब अनोखी बात कही कि "त़ोत़ा मिर्च खा कर भी मीठे बोल बोलता है और इन्सान मीठा खा कर भी कड़वी बातें करता है ।" येह ह़क़ीक़त है कि मिज़ाज के ख़िलाफ़ बात सुनने पर ग़ुस्सा आ ही जाता है मगर ऐसे में जोश से काम लेने के बजाए होश से काम लेते हुवे सब्र व बरदाश्त का दामन छोड़ने से कोई फ़ाइदा ह़ासिल नहीं होता । आइये ! इस बारे में अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की मुबारक सीरत का एक वाक़िआ़ सुनती हैं । चुनान्चे,

कमाले ज़ब्त़ का मुज़ाहरा

          येह उन दिनों की बात है जब आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी का हफ़्तावार सुन्नतों भरा इजतिमाअ़ दावते इस्लामी के सब से पहले मदनी मर्कज़, गुलज़ारे ह़बीब मस्जिद, बाबुल मदीना में होता था । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ इजतिमाअ़ में शिर्कत के लिये इस्लामी भाइयों के साथ जब एक सिनेमा घर के क़रीब से गुज़रे, तो एक नौजवान जो फ़िल्म का टिकट लेने की ग़रज़ से क़ित़ार (Line) में खड़ा था, उस ने बुलन्द आवाज़ से अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को मुख़ात़ब कर के कहा : मौलाना ! बड़ी अच्छी फ़िल्म लगी है, आ कर देख लो (مَعَاذَ اللّٰہ) । इस से पहले कि आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के साथ मौजूद इस्लामी भाई जज़्बात में आ कर कुछ करते, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने बुलन्द आवाज़ से सलाम किया और क़रीब पहुंच कर बड़ी ही नर्मी के साथ इनफ़िरादी कोशिश करते हुवे इरशाद फ़रमाया : बेटा ! मैं फ़िल्में नहीं देखता, अलबत्ता आप ने मुझे दावत पेश की, तो मैं ने सोचा कि आप को भी दावत पेश करूं, अभी اِنْ شَآءَ اللّٰہ गुलज़ारे ह़बीब मस्जिद में सुन्नतों भरा इजतिमाअ़ होगा, आप से शिर्कत की दरख़ास्त है, अगर आप अभी नहीं आ सकते, तो फिर कभी ज़रूर तशरीफ़ लाइयेगा । फिर आप ने उसे एक इ़त़्र की शीशी तोह़फ़े में पेश की । चन्द सालों बाद अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की बारगाह में एक इस्लामी भाई इ़मामा शरीफ़ सजाए ह़ाज़िर हुवे और कुछ इस त़रह़ अ़र्ज़ की