Book Name:Museebaton Per Sabr Ka Zehin Kaisey Banay
۲۴۱۰) या'नी तमन्ना व आरज़ू करेंगे कि हम पर दुन्या में ऐसी बीमारियां आई होतीं जिन में ऑप्रेशन के ज़रीए़ हमारी खालें काटी जातीं ताकि हम को भी वोह सवाब आज मिलता जो दूसरे बीमारों और आफ़त ज़दों को मिल रहा है । (मिरआतुल मनाजीह़, 2 / 424)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! जो ईमान के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे वोही कामयाब है । शैत़ान हर वक़्त ईमान ज़ाएअ़ करवाने की कोशिश में लगा रहता है, मुसीबत आने पर सब्र करते हुवे हर ह़ाल में रब्बे करीम की रिज़ा पर राज़ी रहना चाहिये । अल्लाह पाक जिसे चाहे बे ह़िसाब जन्नत में दाख़िल फ़रमाए और जिसे चाहे इम्तिह़ान में मुब्तला कर के सब्र की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमा कर इनआ़मो इकराम की बारिशें फ़रमाए । हर मुसलमान को इम्तिह़ान के लिये तय्यार रहना चाहिये । पारह 2, सूरतुल बक़रह की आयत नम्बर 214 में फ़रमाने बारी है :
اَمْ حَسِبْتُمْ اَنْ تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَ لَمَّا یَاْتِكُمْ مَّثَلُ الَّذِیْنَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْؕ-(پ 2، سورۃا لبقرہ : 214)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : क्या तुम्हारा येह गुमान है कि जन्नत में दाख़िल हो जाओगे, ह़ालांकि अभी तुम पर पहले लोगों जैसी ह़ालत न आई ।
इस आयते करीमा के तह़्त सदरुल अफ़ाज़िल, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : येह आयत ग़ज़्वए अह़ज़ाब के मुतअ़ल्लिक़ नाज़िल हुई (या'नी उतरी) जहां मुसलमानों को सर्दी और भूक वग़ैरा की सख़्त तक्लीफे़ं पहुंची थीं । इस में उन्हें सब्र की तल्क़ीन फ़रमाई गई और बताया गया कि राहे ख़ुदा में तकालीफ़ बरदाश्त करना क़दीम (या'नी बहुत पहले) से ख़ासाने ख़ुदा (या'नी अल्लाह पाक के ख़ास बन्दों) का मा'मूल रहा है, अभी तो तुम्हें पहलों की सी तक्लीफे़ं पहुंची भी नहीं ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइये ! शुक्र के बारे में चन्द मदनी फूल सुनने की सआ़दत ह़ासिल करती हैं । पहले दो फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुलाह़ज़ा कीजिये :
1. अल्लाह पाक को येह बात पसन्द है कि बन्दा हर निवाले और हर घूंट पर अल्लाह करीम का शुक्र अदा करे । (مسلم،کتاب الذکروالدعاء، الخ،باب استحباب حمد اللہ۔۔۔الخ،ص۱۱۲۲،حدیث:۶۹۳۲)
2. तुम्हें चाहिये कि ज़बानें ज़िक्र से और दिल शुक्र से तर रखो ।(شعب الایمان،باب فی محبة اللہ، فصل فی ادامة ذکر اللہ،۱/ ۴۱۹، حدیث:۵۹۰،ملتقطاً)
٭ शुक्र आ'ला दरजे की इ़बादत है । (शुक्र के फ़ज़ाइल, स. 12) अल्लाह करीम की ने'मतों पर शुक्र वाजिब है । (ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान, पा. 2, अल बक़रह, तह़्तुल आयत : 172) शुक्र की तौफ़ीक़, अ़ज़ीम सआ़दत है । (शुक्र के फ़ज़ाइल, स. 12) ٭ शुक्र में ने'मतों की ह़िफ़ाज़त है । (शुक्र के फ़ज़ाइल, स. 12) ٭ शुक्र अल्लाह वालों की आ़दत है । (शुक्र के फ़ज़ाइल, स. 12) ٭ शुक्र अल्लाह पाक की ना फ़रमानी को छोड़ना है । (शुक्र के फ़ज़ाइल, स. 12, मुलख़्ख़सन) ٭ ने'मत मिलने पर अल्लाह करीम का शुक्र अदा करने की सूरत में बन्दा अ़ज़ाब से मह़फ़ूज़ रहता है । (सिरात़ुल जिनान, 4 / 406) ٭ इ़बादत