Ilm-e-Deen Kay Fazail

Book Name:Ilm-e-Deen Kay Fazail

करते रहे, यहां तक कि वोह वक़्त आया जब क़ाज़ी का मन्सब इन के ह़वाले कर दिया गया । एक दफ़्आ़ ख़लीफ़ा ने इन की दा'वत की, दौराने दा'वत ख़लीफ़ा ने बादामों, देसी घी का ह़ल्वा और उ़म्दा फ़ालूदा इन की त़रफ़ बढ़ाते हुवे कहा : ऐ इमाम ! येह ह़ल्वा खाइये ! रोज़ रोज़ ऐसा ह़ल्वा तय्यार करवाना हमारे लिये आसान नहीं । येह सुन कर ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम अबू यूसुफ़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को ह़ज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की बात याद आई, तो वोह मुस्कुराने लगे । ख़लीफ़ा के पूछने पर फ़रमाया : मेरे उस्तादे मोह़्तरम, ह़ज़रते सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अबू ह़नीफ़ा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने सालों पहले मेरी वालिदा से फ़रमाया था कि तुम्हारा येह बेटा बादामों, देसी घी का ह़ल्वा और फ़ालूदा खाएगा, आज मेरे उस्तादे मोह़्तरम का फ़रमान पूरा हो गया । फिर उन्हों ने अपने बचपन का सारा वाक़िआ़ ख़लीफ़ा को सुनाया, तो वोह बहुत तअ़ज्जुब करने लगे और कहा : बेशक इ़ल्म ज़रूर फ़ाइदा देता और दीनो दुन्या में बुलन्दी दिलवाता है । (عیون الحکایات،الحکایۃ الثانیۃ عشرۃ بعد الثلاثمائۃ ،ص۲۷۸ ملخصاً )

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा ह़िकायत से हमें 3 मदनी फूल मिले : (1) औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن, अल्लाह पाक की अ़त़ा से आइन्दा पेश आने वाले वाक़िआ़त को पहले ही जान लिया करते हैं । (2) एक कामिल उस्ताद की ख़ास तवज्जोह इन्सान को क्या से क्या बना देती है ! (3) इ़ल्मे दीन दुन्या व आख़िरत में काम्याबी व कामरानी का बाइ़स है, यहां तक कि बड़े बड़े दुन्यादारों को वोह मक़ामो मर्तबा नहीं मिलता जो इ़ल्म के शैदाइयों को ह़ासिल हो जाता है । लिहाज़ा हमें भी चाहिये कि इ़ल्मे दीन ख़ुद भी सीखें और अपनी औलाद की मदनी तरबिय्यत के लिये उन्हें भी दीन का इ़ल्म सिखाएं ।

          याद रखिये ! मरने के बा'द नेक आ'माल के इ़लावा दीगर चीज़ें कुछ काम नहीं आएंगी, येह मालो दौलत, बैंक बेलन्स, आ़लीशान बंगले, बड़ी बड़ी गाड़ियां, दुन्यवी मक़ामो मर्तबा सब यहीं रह जाएगा, क़ब्र में इन में से कुछ भी साथ न जाएगा । नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : जब इन्सान फ़ौत हो जाता है, तो उस के आ'माल का सिलसिला ख़त्म हो जाता है, सिवाए तीन आ'माल के : (1) सदक़ए जारिया (2) ऐसा इ़ल्म जिस से फ़ाइदा उठाया जाए और (3) नेक औलाद जो उस के लिये दुआ़ करती है । (مسلم،کتاب الوصیة،باب ما یلحق الانسان من الثواب بعد وفاته، ص ۸۸۶، حدیث:۱۶۳۱)

फ़ुक़्दाने इ़ल्म का नुक़्सान

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा ! सदक़ए जारिया, इ़ल्मे दीन को फैलाना और नेक औलाद ऐसे आ'माल हैं कि मरने के बा'द भी इन का सवाब पहुंचता रहता है, लिहाज़ा अपने बच्चों को दीनी ता'लीम दिलवाने के लिये कमर बस्ता हो जाइये और उन्हें जामिअ़तुल मदीना में दाख़िल करवाइये । फ़ी ज़माना बुराइयों में सब से बड़ी बुराई जहालत है जो मुआ़शरे की दीगर बुराइयों में सरे फे़हरिस्त है । घर बार का मुआ़मला हो या