Book Name:Ilm-e-Deen Kay Fazail
मिलती है । आइये ! तरग़ीब के लिये इनफ़िरादी कोशिश की एक मदनी बहार सुनते हैं । चुनान्चे,
राहे ख़ुदा में सफ़र के लिये इनफ़िरादी कोशिश
आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी की मर्कज़ी मजलिसे शूरा के एक रुकन के छोटे भाई दर्से निज़ामी या'नी आ़लिम कोर्स के पांचवें दरजे के त़ालिबे इ़ल्म रह चुके हैं, येह और इन के फूफाज़ाद भाई मर्कज़ुल औलिया से कुछ सामान छोड़ने के लिये दो दिन के लिये बाबुल मदीना तशरीफ़ लाए हुवे थे, जब वोह अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की ख़िदमते अक़्दस में मुलाक़ात के लिये ह़ाज़िर हुवे, तो आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने इन्तिहाई शफ़्क़त के साथ उन पर इनफ़िरादी कोशिश फ़रमाते हुवे मदनी क़ाफ़िले में सफ़र की तरग़ीब दिलाई, तो वोह दोनों घर के लिये रवाना होने की बजाए हाथों हाथ राहे ख़ुदा में सफ़र करने वाले आ़शिक़ाने रसूल के मदनी क़ाफ़िले के मुसाफ़िर बन गए । जब अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को इस बारे में बताया गया, तो आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने बहुत ख़ुशी का इज़्हार फ़रमाया ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने की बरकत से न सिर्फ़ अल्लाह पाक राज़ी होता है बल्कि रसूले बे मिसाल, बीबी आमिना के लाल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की रिज़ा भी ह़ासिल होती है । लिहाज़ा आप भी हिम्मत कीजिये और अपनी औलाद को आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के तह़त क़ाइम जामिअ़तुल मदीना में दाख़िल करवा कर ख़ुश नसीबों की फे़हरिस्त में अपना और अपनी औलाद का नाम दाख़िल करवाइये । अपने बच्चों को इ़ल्मे दीन से मह़रूम कर के दुन्यवी ता'लीम दिलवाने का मक़्सद ज़ियादा से ज़ियादा दुन्यवी माल ह़ासिल करना होता है और बद क़िस्मती से बा'ज़ वालिदैन येह समझते हैं कि अगर हमारी औलाद दीनी ता'लीम की त़रफ़ माइल हुई, तो مَعَاذَ اللّٰہ उस का मुस्तक़्बिल ख़त़रे में पड़ जाएगा ! येह घर कैसे बसाएगा ? और किस त़रह़ उसे चलाएगा ? चन्द हज़ार रुपयों में अपनी ख़्वाहिशात को कैसे पूरा कर सकेगा ? अल ग़रज़ ! इस त़रह़ के बे शुमार शैत़ानी वस्वसे आते हैं जिस के सबब बा'ज़ लोग अपने बच्चों को मुस्तक़िल त़ौर पर दीनी ता'लीम दिलवाने से मह़रूम रह जाते हैं । ऐसे वालिदैन की ख़िदमत में अ़र्ज़ है कि एक मुसलमान जब भी कोई काम करे, उस का मक़्सद दुन्या ह़ासिल करने के बजाए अल्लाह करीम की रिज़ा ह़ासिल करना हो और ख़ास कर इ़ल्मे दीन सीखने के मुआ़मले में तो ख़ालिस रिज़ाए इलाही की ही निय्यत होनी चाहिये, जहां तक मालो दौलत का तअ़ल्लुक़ है, तो येह बात अल्लाह करीम के करम से बहुत दूर है कि वोह अपने दीन की ता'लीम ह़ासिल करने वाले को अकेला छोड़ दे, ऐसा कैसे हो सकता है ? ह़दीसे पाक में है : जो इ़ल्मे दीन ह़ासिल करेगा, अल्लाह पाक उस की मुश्किलात को आसान