Book Name:Ilm-e-Deen Kay Fazail
कारोबार का, दोस्त अह़बाब का हो या रिश्तेदार का, निकाह़ का हो या औलाद की अच्छी तरबिय्यत का, ग़रज़ ! क्या अल्लाह पाक के ह़ुक़ूक़ और क्या बन्दों के ह़ुक़ूक़ ? ज़िन्दगी के हर शो'बे में जहां भी जिस अन्दाज़ से भी ख़राबियां पाई जा रही हैं, अगर हम सन्जीदगी से इस के बारे में ग़ौर करें, तो येह बात हम पर वाज़ेह़ हो जाएगी कि इस का बुन्यादी सबब इ़ल्मे दीन से दूरी है । इ़ल्मे दीन न होने और दुरुस्त रहनुमाई से मह़रूमी के बाइ़स न सिर्फ़ मुआ़मलात व अख़्लाक़िय्यात बल्कि अ़क़ाइद व इ़बादात तक में त़रह़ त़रह़ की बुराइयां और ख़राबियां निहायत तेज़ी के साथ बढ़ती जा रही हैं जिन को रोकने के लिये सिर्फ़ इ़ल्मे दीन ह़ासिल कर लेना ही काफ़ी नहीं बल्कि अपने इ़ल्म पर अ़मल करना और इस के ज़रीए़ दूसरों की इस्लाह़ की कोशिश करना भी ज़रूरी है ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने अपने मुरीदों, मह़ब्बत व अ़क़ीदत और तअ़ल्लुक़ रखने वालों को अपनी और दूसरों की इस्लाह़ की कोशिश में मगन रहने का ज़ेहन देते हुवे उन्हें येह मदनी मक़्सद अ़त़ा फ़रमाया है कि "मुझे अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश करनी है । اِنْ شَآءَ اللّٰہ" आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की इ़ल्म दोस्ती और इ़ल्मे दीन आ़म करने की तड़प के नतीजे में आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के तह़त मुल्क व बैरूने मुल्क में सैंक्ड़ों जामिआ़तुल मदीना (लिल बनीन व लिल बनात) का क़ियाम अ़मल में लाया जा चुका है । जामिअ़तुल मदीना की सब से पहली शाख़ 1995 ई़. में बाबुल मदीना में खोली गई, जहां 3 असातिज़ए किराम ने आ़लिम कोर्स (या'नी दर्से निज़ामी) पढ़ाना शुरूअ़ किया । इस जामिअ़तुल मदीना को क़ाइम हुवे ज़ियादा अ़र्सा न गुज़रा था कि येह इ़मारत इ़ल्म के त़लबगार इस्लामी भाइयों की कसरत की वज्ह से ना काफ़ी हो गई । चुनान्चे, इस जामिअ़तुल मदीना को 1998 ई़. में जामेअ़ मस्जिद फै़ज़ाने उ़स्माने ग़नी के पड़ोस की एक इ़मारत में मुन्तक़िल कर दिया गया । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ और मुबल्लिग़ीने दा'वते इस्लामी की जानिब से इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने की भरपूर तरग़ीब के नतीजे में जहां लाखों आ़शिक़ाने रसूल राहे ख़ुदा में सफ़र करने वाले मदनी क़ाफ़िलों के मुसाफ़िर बने, वहीं कसीर ता'दाद ने मदनी क़ाफ़िलों में सफ़र करने के साथ साथ बा क़ाइ़दा इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने के लिये जामिअ़तुल मदीना का भी रुख़ किया, यूं दुन्या भर में जामिअ़तुल मदीना की मज़ीद शाख़ें खुलती चली गईं ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ मुल्के अमीरे अहले सुन्नत समेत कई मुमालिक में 602 जामिआ़तुल मदीना क़ाइम हैं जिन में कमो बेश 52843 त़लबा व त़ालिबात दर्से निज़ामी (या'नी आ़लिम कोर्स) कर रहे हैं जब कि 8697 त़लबा व त़ालिबात ता'लीम मुकम्मल कर के सनदे फ़राग़त भी पा चुके हैं । आप भी अपना नाम ख़ुश नसीबों में दाख़िल करवाइये और अपने बच्चों को जामिअ़तुल मदीना में दाख़िल करवाइये, अपने भाइयों, दोस्तों, अ़ज़ीज़ों और दीगर रिश्तेदारों पर इनफ़िरादी कोशिश कीजिये और उन्हें अपने बच्चों को जामिअ़तुल मदीना में दाख़िल करवाने का ज़ेहन दीजिये । इस से जहां हर त़रफ़ इ़ल्मे दीन की रौशनी फैलेगी और